हनुमान जयंती पर बन रहा सिद्धि योग, ऐसे करें पूजा

धर्मतंत्र
हनुमान जयंती

धर्म डेस्कः चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है जो आज (मंगलवार) है। मान्यताओं के अनुसार, हनुमान भक्त इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन मंदिरों में हनुमान जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।

पंडित दीप लाल जयपुरी ने बताया कि इस वर्ष हनुमान जयंती के दिन सिद्धि योग बनने से इसका महत्व और बढ़ गया है। 27 अप्रैल को पंचांग के अनुसार सिद्धि और व्यतीपात नामक योग का निर्माण हो रहा है। सिद्धि योग शाम 8 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में सिद्धि योग को शुभ योग माना जाता है। इस दौरान शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इसके बाद व्यतीपात योग लग जाएगा जिसे शुभ नहीं माना जाता।

धन से जुड़ी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए करें ये उपाय
मान्यता है कि हनुमान जयंती के दिन भक्त नौकरी व व्यापार में धन से जुड़ी समस्याओं के लिए उपाय भी करते हैं। इस दिन शुभ मुहूर्त में हनुमान जी के आगे चमेली के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान जी को चोला चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

बता रहे हैं राशि के अनुसार हनुमान जी को लगाएं जाने वाले भोग:
मेष-    बेसन के लड्डू 
वृष-     तुलसी के बीज 
मिथुन-    तुलसी दल अर्पित
कर्क-   बेसन का हलवा
सिंह-    जलेबी का भोग लगाएं।  
कन्या-   चांदी का अर्क प्रतिमा पर लगाएं
तुला-    मोतीचूर के लड्डू का भोग 
धनु-     मोतीचूर के लड्डू के साथ तुलसी दल
मकर-     मोतीचूर के लड्डू का भोग
कुंभ-सिंदूर का लेप लगाना चाहिए। 
मीन- लौंग चढ़ाएं

पूजा विधि

  • ऊँ हनुमते नम:। या अष्टादश मंत्र ‘ॐ भगवते आन्जनेयाय महाबलाय स्वाहा। का जप करने से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से तो मुक्ति मिलती है।
  • पूजा में चोला चढ़ाना ,सुगन्धित तेल और सिंदूर चढ़ाने का भी विधान है।
  • रामचरित मानस का अखंड पाठ, सुंदरकाण्ड का पाठ, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक आदि का पाठ करें।
  • हनुमान जयंती की पूजाविधि (Hanuman Jayanti Puja Vidhi)
  • हनुमान का जन्मोत्सव प्रातः सूर्योदय के समय मनाया जाता है। हनुमान की मूर्ति अथवा प्रतिमा की यथासंभव पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पद्धति से पूजा करनी चाहिए। सूर्योदय के समय शंखनाद कर पूजा आरंभ करें। भोग लगाने के लिए सोंठ और चीनी का मिश्रण ले सकते हैं। इसके पश्‍चात वह मिश्रण प्रसाद के रूप में सबको बांट दें। हनुमानजी को मदार (रुई) के फूल-पत्तों का हार अर्पण करें। पूजा के उपरांत श्रीराम एवं श्रीहनुमान की आरती करें।
  • हनुमान के मूर्ति को तेल, सिंदूर, मदार के पत्ते व फूल अर्पण करने का कारण
  • ऐसा कहते हैं कि देवता को जो वस्तु भाती है, वही उन्हें पूजा में अर्पण की जाती है। तेल, सिंदूर एवं मदार के फूल तथा पत्ते इन वस्तुओं में हनुमान के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण, जिन्हें पवित्रक कहते हैं, उन्हें आकृष्ट करने की क्षमता होती है। अन्य वस्तुओं में ये पवित्रक आकृष्ट करने की क्षमता अल्प होती है। इसीलिए हनुमान को तेल, सिंदूर एवं मदार के पुष्प-पत्र इत्यादि अर्पण करते हैं। कुछ स्थानोंपर हनुमानजीको नारियल भी चढाते हैं। हनुमान की पूजाविधिमें केवडा, चमेली या अंबर, इन उदबत्तियोंका उपयोग करें। हनुमान की अल्प से अल्प पांच या पांचकी गुणामें परिक्रमाएं करें। स्थान के अभाव अथवा अन्य कारणवश परिक्रमा करना संभव न हो, तो अपने चारों ओर तीन बार गोल घूमकर परिक्रमा लगाएं।

ऐसे हुआ हनुमान जी का जन्म

राजा दशरथजी ने पुत्रप्राप्ती के लिए ‘पुत्रकामेष्टि यज्ञ’ किया। तब अग्निदेव यज्ञ से प्रकट हुए और दशरथ की रानियों के लिए खीर (यज्ञ में अवशिष्ट प्रसाद) प्रदान किया। अंजनी, जो दशरथ की रानी की तरह तपस्या कर रही थी, उन्हे भी यह प्रसाद मिला और इसी कारण हनुमान का जन्म हुआ। उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी। यह दिन ‘हनुमान जयंती’ के रूप में मनाया जाता है।

कैसे पड़ा हनुमान नाम
वाल्मीकि रामायण में किष्किंधा कांड, सर्ग 66 में इस विषय में दिया है कि अंजनी को वीर्यवान्, बुद्धिसंपन्न, महातेजस्वी, महाबली और महापराक्रमी पुत्र हुआ। जन्म होने के बाद उगते सूर्य का लाल गोला देखकर उसे पका फल समझकर हनुमान ने आकाश में सूर्य की दिशा में उडान भरी। इस पर इंद्र ने क्रोधित होकर उन पर अपना वज्र फेंका। विशाल पर्वतों का चूर्ण करने वाले सामर्थ्यवान हनुमानजी ने केवल इंद्र के वज्र को मान देने के लिए उसे अपनी ठोडी पर झेल लिया और मूर्छित हो गए। तब से उन्होंने हनुमान नाम धारण किया। हनुमान शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है हनुः अस्य अस्ति इति । अर्थात जिसकी ठोडी विशेष है, ऐसे वज्रांग (वज्र समान अंग है जिसका) कहलाने लगे। उसी का अपभ्रंश होकर बजरंग नाम पड़ा। हनुमान ने जन्म से ही सूर्यबिंब की ओर भरी उडान से कुंडलिनी शक्ति जागृत हो गई थी।

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