शीतला माता को क्यों लगाते हैं बासी भोजन का भोग, गर्मियों में न करें ये काम

धर्मतंत्र
माता शीतला
माता शीतला का स्वरूप

धर्म डेस्कः इस वर्ष शीतला अष्टमी 4 अप्रैल यानी आज (रविवार) है जो 5 अप्रैल को सुबह 2:29 तक रहेगी। अगर आप सर्वार्थ सिद्धि योग में मां शीतला की पूजा करना चाहते तो आपको 5 अप्रैल को सुबह 2 बजे के बाद माता शीतला को प्रसाद चढ़ाना होगा। इस बार शीतला अष्टमी को कई अन्य महत्वपूर्ण योग भी बन रहे हैं जिसमें आप मनचाहे कार्यों की शुरुआत कर सकते हैं। इसके अलावा आगे हम यह भी जानेंगे कि क्यों हम माता शीतला को बासी भोजन कराते हैं? और गर्मियों में क्या काम नहीं करना चाहिए।

पंडित दीपलाल जयपुरी ने बताया कि माता शीतला की पूजा के बाद घरों में बासी खाने का सेवन बंद करने का संदेश भी यह त्यौहार देता है। क्योंकि मौसम में गर्मी होने के कारण बासी खाना सेहत को नुकसान पहुंचाने लगता है। शीतला अष्टमी को ऋतु परिवर्तन का संकेत भी माना जाता है। क्योंकि इस दिन के बाद से ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु शुरू हो जाती है और गर्मियों में बासी भोजन नहीं खाया जाता है। यही इस त्यौहार का वैज्ञानिक कारण भी है। हिंदू संस्कृति के सभी त्योहारों का कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शीतला माता की पूजा हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की जाती है। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन लोग माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाते हैं। बाद में इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

शीतला अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त-
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 06:08 सुबह से 06:41 शाम तक।
अवधि – 12 घण्टे 33 मिनट।
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को 04:12 सुबह बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को 02:59 बजे शाम।

शीतला अष्टमी के दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 5 अप्रैल सुबह 04:24 से 05:09 तक।
अभिजित मुहूर्त- सुबह11:47 से 12:37 शाम तक।
विजय मुहूर्त- सुबह 02:17 पी एम से 03:07 शाम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:14 पी एम से 06:38 पी एम तक।
अमृत काल- रात 09:24 से 10:58 रात तक।
निशिता मुहूर्त- 11:48 रात से सुबह12:34 , अप्रैल 05 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 02:06 अप्रैल 05 से 05:55 सुबह तक।

 माता शीतला

कैसे करें शीतला मां की उपासना
मां शीतला को एक चांदी का चौकोर टुकड़ा अर्पित करें। साथ में उन्हें खीर का भोग लगाएं। बच्चे के साथ माँ शीतला की पूजा करें। चांदी का चौकोर टुकड़ा लाल धागे में बच्चे के गले में धारण करवाएं।.

शीतला अष्टमी को क्यों लगता है बासी खाने का भोग
मान्यता है कि एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। अष्टमी के दिन बासी चावल माता शीतला को चढ़ाए व खाए जाते हैं। लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह ताजा खाना बना लिया। क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं। इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए। सास को ताजे खाने के बारे में पता चला तो उसने नाराजगी जाहिर की। कुछ समय बाद पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई है। इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया।
शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं। बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी। उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं। कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला। शीतला और ओरी ने बहुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए। ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए। ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है। ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन ताजा खाना बनाने के कारण ऐसा हुआ है।
ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा।

जानिए मां शीतला और उसके स्वरूप के बारे में
मां शीतला का उल्लेख सर्वप्रथम स्कन्दपुराण में मिलता है। इनका स्वरूप अत्यंत शीतल है और कष्ट-रोग हरने वाली हैं। गधा इनकी सवारी है और हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते हैं। मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है। इनकी उपासना का मुख्य पर्व “शीतला अष्टमी” है।
मां शीतला के हाथ में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सफाई और समृद्धि का सूचक हैं। इनको शीतल और बासी खाद्य पदार्थ चढ़ाया जाता है, जिसे बसौड़ा भी कहते हैं। इन्हें चांदी का चौकोर टुकड़ा जिस पर इनकी छवि को उकेरा गया हो, अर्पित करते हैं। अधिकांश लोग इनकी उपासना बसंत औप ग्रीष्म में करते हैं या जब रोगों के संक्रमण की संभावना सर्वाधिक होती हैं.

क्या है शीतलाष्टमी का वैज्ञानिक आधार ?
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।रोगों के संक्रमण से आम व्यक्ति को बचाने के लिए शीतला अष्टमी मनाई जाती है। इस दिन आखिरी बार आप बासी भोजन खा सकते हैं। इसके बाद से बासी भोजन का प्रयोग बिल्कुल बंद कर देना चाहिए। अगर इस दिन के बाद भी बासी भोजन किया जाए तो स्वास्थ्य की समस्याएं आ सकती हैं। यह पर्व गर्मी की शुरुआत में पड़ता है। गर्मी के मौसम में आपको साफ-सफाई, शीतल जल और एंटीबायटिक गुणों से युक्त नीम का विशेष प्रयोग करना चाहिए।

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