विचार डेस्कः आपको ये शीर्षक देखकर थोड़ा अजीब लगा होगा या ये कहे आप सेक्युलर और नॉन सेक्युलर के खेल में पड़ गए होगे। हो सकता है किसी को ये शीर्षक ही सांप्रदायिक लगा हो या हो सकता है किसी को ये पढ़कर अच्छा लगे तो कोई पसंद करने के बाद भी ये सोचे की इसे शेयर या लाइक करू या न करू। अगर करुगा तो कोई मुझे सांप्रदायिक ना कह दे। हालांकि मै यंहा ऐसा कुछ नहीं करने जा रहा हूँ। जिससे किसी की भावनाओ को ठेस पहुंचे लेकिन इन सबके बावजूद मेरे कुछ सवाल है, जो मै सभी से पूछना चाहता हूँ और ये सवाल उनसे भी है जो सवाल पूछते है ओर उनसे भी जो उनका जवाब देते है और उन सभी से भी जो उन सवालो-जवाबो के बीच अपनी राय देते है और आम जनता से भी जो राय सुनकर अपनी राय बनाती है और चुनाव के दौरान वोट से अपनी राय रखती है।
आप सभी आतंकवादी शब्द से परिचित होगे लेकिन ये आतंकवादी कौन होते ? किस धर्म के होते है ? या यु कहे कि वास्तव में आतंकवादियों की श्रेणी में कौन आता है ? देखा जाए तो ये आतंकवादी शब्द ही क्यों इस्तेमाल किया गया, कुछ लोगो के लिए ? वैसे आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता है। ये पँक्ति आप सभी ने नेताओ से कई बार सुनी होगी। ये सत्य भी है परन्तु अधूरा। अधूरा इसलिए क्योकि नेता लोग धर्म को देख कर ही आतंकियों का धर्म बताते है।
ऐसा क्यों है ? कि कुछ विशेष वर्ग के लोग ही ज्यादातर आतंकवादी होते है ? या हमे ये भी सोचना चाहिए कि आतंकवादी बनते क्यों है ? वो ऐसी क्या मानसिकता है या प्रेरणा है जिससे ये प्रेरित हो कर आतंकवादी बनते है ? क्या किसी को मार कर कोई ईश्वर का प्यारा हो सकता है ?
धर्म क्या है ? यह बहुत गहरा और विशाल शब्द है जिसके सामने सभी तर्क बौने लगते है। क्या ईश्वर को पूजने की पद्धति के बदलने से धर्म बदल जाता है ? क्या ईश्वर के लिए कुछ पूजा पद्धति वाले खास है ? क्या ईश्वर इतनी संकीर्ण सोच का हो सकता है ? ये सवाल केवल मेरे नहीं है। ऐसे ही कितने सवाल ओर है और हो सकते है।
फिर ये कौन लोग है जो “अल्लाह हुँ अकबर” का नारा लगा कर लोगो को बेरहमी से मारते है ? और जिनके हाथ में हथियार नहीं है वो लोग अपने फतवो से लोगो के जज्बातों को , इंसानियत को मारते है ?
तो ये कौन लोग है ? जिनके वन्दे मातरम कहने से धर्म खतरे में पड़ जाता है। क्या किसी के सम्मान में सर झुकाने से अल्लाह को बुरा लगता है ? ये कौन लोग है ? जो दुसरो को काफिर कहते है अगर इनकी ही पूजा पद्धति को मानने वाला किसी विशेष पार्टी में चला जाए तो वो भी काफिर हो जाता है ?
ये कौन लोग है ? दूसरे धर्म ( मत ) के मानने वालो के ईश्वर को और उनकी मान्यताओ को नहीं मानते और ना ही उनका सम्मान करते है लेकिन अपने लिए दुसरो से सब कुछ अपेक्षित करते है ? ये कौन लोग है ? जंहा भी बहुसंख्यक है वंहा पर अल्पसंख्यक बचते ही नहीं है या मारे जाते है या परिवर्तित कर दिए जाते है।
ये कौन लोग है ? जिसने पूरी दुनिया में आतंक फैला के रखा है ? ये कौन लोग है जिन्हे किसी भी देश में कुछ न कुछ तकलीफ रहती है ? जंहा इनका राज होता है वंहा कोई दूसरा धर्म न पनपता है और न ही पनपें दिया जाता है ? ये कौन लोग है जो पूरी दुनिआ पर आज भी राज करने का सपना देखते है ? ये कौन लोग है जो अपनी मध्यकालीन मानसिकता से आगे नहीं बढे है ? ये कौन लोग है जंहा अल्पसंख्यक होते है तो सेक्युलर की बीन बजाते है ?
इन सबके बाद मै यही कहना चाहता हूँ कि सवाल और भी है, ख्याल और भी है। मुस्लिमो को ये बात आज नहीं तो कल समझनी पड़ेगी कि इन्हे दुनिया में किसी से भी खतरा नहीं है। खतरा इन्हे अपनी सोच से है जो ये अपने साथ साथ दुसरो के लिए भी बन रहे है। अपनी भावनाओ के साथ दुसरो की भावनाओ की भी कद्र करना सीखे। हालांकि सबकी सोच एक जैसी नहीं है परन्तु जो सही है उनकी संख्या काफी काम है।
मुस्लिमो से कोई नफरत नहीं करता है परन्तु इन पर भरोसा भी नहीं करता है और इस विशवास की कमी के कारण ही लोग इन पर शक करते है। कहते है जब लोग साप से डरते है तो वो ये नहीं देखते की वो जहरीला है या नहीं। उस डर से वो जो प्रतिक्रिया देते है। वैसी ही प्रतिक्रिया मुसलमानो के लिए मुश्किलें खड़ी करती है।