मुझे आज कल एक चीज बहुत महसूस हो रही है शायद आपको भी हो रही होगी शायद नहीं भी कि अन्ना आंदोलन के बाद हमारे देश मे आंदोलन करने का एक ट्रेंड निकल पड़ा। हर दो चार महिने बाद कोई भी कही भी खड़े होकर तीन-चार अपनी पसंद के नारे लगाता है, विरोध करता है। 4-5 गंभीर समस्याओं की सूची अपने मुखार बिन्द से गिनाता है। अपनी कौम, अपनी जाति, अपने धर्म की बात करता है। देश का सच्चा नागरिक होने की और सविधान की कसमें खाता है। संविधान सभा के चेयरमैन रहे ड़ा भीमराव अंबेड़कर का नाम लेता है। गरीबो, मजबूरों, शोषितों, दलितों के हित के लिए लड़-मरने की बात करता है। कुछ दिन बाद उसके सोशल मीडिया पर कैंपेन चलते है लोगों को उसके बारे में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बताया जाता है कि यह वही शख्स है जो आपके अधिकारों के लिए लड़ रहा। कल तक उसके मौहल्ले के आखिरी मकान में रहने वाला आदमी, उस कथित नेता का नाम तलक नहीं जानता था। लेकिन कुछ दिनों में ही वह सोशल मीडियां में ट्रेंड करने लगता है। जब वह माल (खबर) बाजार में बिकने लायक बन जाता है। उसके बाद वह मुख्य मीडिया पर आना शुरू हो जाता है। अब उसे उसके मौहल्ले वाले ही नहीं बल्कि उसे वो लोग भी जानने लगते है जो उसके मौहल्ले के नहीं है। फिर उसके टीवी पर आने जाने का सिलसिला शुरू होता है। उसके कौम वाले, उसकी जात वाले, उसके धर्म वाले उसे ऐसे देखते है जैसे वह बहुत बड़ा समाजसेवी हो।
जबकि वह फल है उस नकारात्मक राजनीति का और विकृत चेहरा है हमारी समाचार पत्रों की मानसिकता का। जो बड़े चाव से इस तरह के कच्चा माल समाज से उठाते है और उसमें अपनी पसंद का फेर बदल करके फिर दुबारा उसे उसी बाजार में बेचते हैं। क्योंकि न्यूज, खंबर यह समाचार पत्रों, चैनलों के लिए बस एक उत्पाद है। जिसे मिर्च-मसाला लगाकर अपनी पसंद के बाजार, और निर्धारित दर्शको को बेचा जाता है तभी तो उनकी दुकान चलेगी। यह लोग तर्क-वितर्क नहीं करते बल्कि अघोषित मुद्दे को घोषित मुद्दा बनाकर पेश करते है। यह इन तथा कथित नेताओं से तीखे सवाल पुछने कि हिम्मत नहीं करते। वह उन्हें आइना भी नहीं दिखाते ताकि कल को उनका कच्चा माल (खबर) खराब न हो जाए। बल्कि उनका नामकरण कर देते नेता के रूप में।
अन्ना आंदोलन के बाद निकली नई पार्टी, फिर पाटीदार आंदोलन और अब यह भीम आर्मी वही कच्चा माल है जिसे न्यूज वाले बाद में पका पका कर खाएंगे। इससे दोनों के हित सध रहे है। एक शॉर्ट कट तरीके से नेता बन जाता और दूसरे को समाज में बेचने के लिए नया उत्पाद मिल जाता है।