विचार डेस्कः मशहूर पत्रकार रोहित सरदाना के एक ट्वीट पर बहुत बवाल होते देखा तो विचार किया कि ट्वीट को फिर से पढ़ लिया जाए। रोहित सरदाना ने ट्वीट में पांच नामों का जिक्र किया है- राधा, दुर्गा, फातिमा, आयशा और मैरी। यहां तक तो सब ठीक था पर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों से सवाल पूछते हुए रोहित सरदाना ने इन नाम के आगे सैक्सी शब्द का विशेषण लगा दिया। अब एक धर्म विशेष के लोगों की भावनाएं इस पर आहत हो गईं। लेकिन असल मुद्दा इस हो-हल्ले में गोण हो गया। सरदाना का सवाल तो जस का तस बना हुआ है। रोहित सरदाना का सीधा सवाल था कि अभिव्यक्ति की आजादी फिल्मों का नाम सेक्सी दुर्गा, सेक्सी राधा रखने में ही है क्या? क्या आपने कभी सेक्सी फातिमा, सेक्सी आयशा या सेक्सी मैरी जैसे नाम सुने हैं फिल्मों के”
रोहित के सवाल पर बवाल क्यों ?
2012 में एक फिल्म आई थी ‘स्टुडेंट ऑफ द ईयर’। उस फिल्म का एक गाना बहुत मशहूर हुआ था। गाने के दो शब्द सरदाना के सवाल में भी मौजूद हैं ‘सैक्सी’ और ‘राधा’। अब सवाल उठता है कि जब उस समय बवाल नहीं था तो आज सरदाना के सवाल पर बवाल क्यों है?
गौरतलब है कि केरल के फिल्म निर्देशक सनल कुमार शशिधरन ने एक फिल्मू बनाई है‘सैक्सी दुर्गा’। ये दो शब्द भी सरदाना के पूछे गए सवाल में हैं। अब फिर से सवाल उठता है कि जब सैक्सी राधा पर बवाल नहीं था, सैक्सी दुर्गा फिल्म रचनात्मकता की स्वतंत्रता में आती है तो सैक्सी शब्द फातिमा, आयशा और मेरी शब्द से पहले आ गया तो बवाल क्यों हो गया है। क्या हमारे समाज में इन नाम की कोई लड़की नहीं हैं? फिर सरदाना के सवाल पर बवाल क्यों मच रहा है? क्योंकि सवाल तो बस इतना सा है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर फिल्मों में सैक्सी राधा, सैक्सी दुर्गा शब्द का प्रयोग हो सकता है तो सैक्सी फातिमा, सैक्सी आयशा या सैक्सी मेरी का नाम कयों नहीं हो सकता? अगर हो सकता है तो क्या इन नाम का प्रयोग कर कोई फिल्म निर्माता अभिव्यक्ति की आजादी का दम दिखाएगा?