पाक के साथ जंग लड़ चुके सैनिक को विकलांगता लाभ देने से सेना का इनकार, कोर्ट ने 15% के ब्याज के साथ बकाया देने के साथ दिया ये आदेश

हरियाणा

 

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हरियाणा डैस्क: भारतीय सेना द्वारा सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के एक निर्णय के खिलाफ जाने पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है। कड़ा रुख अपनाते हुए High Court ने सेना और केंद्र सरकार को कैप्टन रीत एम.पी. सिंह को बकाया युद्ध घायल पैंशन पर अतिरिक्त 15 प्रतिशत ब्याज देने का आदेश दिया है।

बता दें कि कैप्टन सिंह 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध में देश के लिए लड़ चुके हैं और ये वीर चक्र से सम्मानित के योद्धा हैं। युद्ध के दौरान पटियाला निवासी और 92 वर्षीय कैप्टन सिंह को 80 प्रतिशत विकलांगता हुई थी। उन्होंने युद्ध में एक आंख गंवा दी थी।

केंद्र सरकार द्वारा 1996 में विकलांगता प्रतिशत से जुड़ी एक नीति लागू की जो वर्ष 1996 से लागू मानी गई। ‘ब्रॉड-बैंडिंग’ नीति के तहत उन्हें बढ़ी हुई विकलांगता पेंशन नहीं दी गई। यह लाभ पहले केवल 1996 के बाद “अशक्तता के कारण सेवा समाप्त” होने वाले सैनिकों को दिया जाता था, जबकि 1996 से पहले सेवा समाप्त करने वाले या सेवा शर्तें पूरी करने, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने, या सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों को इससे वंचित रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस कट-ऑफ को असंवैधानिक ठहराया और सेवा छोड़ने के तरीके के आधार पर किए गए भेदभाव को रद्द कर दिया। कोर्ट ने सभी प्रभावित विकलांग सैनिकों को 1996 से बकाया राशि 8% ब्याज सहित देने का आदेश दिया।

हालांकि, इन आदेशों को लागू न करने पर कई एफ.एफ.टी.  और उच्च न्यायालयों ने अधिकारियों को लाभ जारी करने का निर्देश किया। लेकिन लेकिन रक्षा मंत्रालय  के वित्त विभाग ने सेना को इन आदेशों को चुनौती देने का निर्देश दिया। इसके परिणामस्वरूप अदालतों की कड़ी टिप्पणियां आईं। सुप्रीम कोर्ट ने भी सेना द्वारा विकलांगता पेंशन से संबंधित फैसलों को चुनौती देने पर असंतोष व्यक्त किया।

अधिकारियों पर लगाया जुर्माना

न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति मीनाक्षी आई मेहता की खंडपीठ ने आश्चर्य जताया कि कैसे एक युद्ध नायक को मुकदमेबाजी में घसीटा गया। वर्ष 2018 में एफ.एफ.टी.  द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती दी गई, जबकि इस मुद्दे पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय दिया जा चुका था। अदालत ने आदेश दिया कि युद्ध नायक को बकाया राशि पर 15% अतिरिक्त ब्याज दिया जाए, और यह राशि उन अधिकारियों से वसूली जाए, जिन्होंने समय पर भुगतान नहीं किया।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने सेना द्वारा सेवा के दौरान मधुमेह से पीड़ित एक विकलांग सैनिक के लाभ को चुनौती देने पर नाराजगी व्यक्त की थी। दिसंबर 2024 में, सेना और केंद्रीय रक्षा मंत्रालय पर एक सैन्य विधवा की पेंशन को चुनौती देने के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

दिया गया 50 लाख रुपये का मुआवजा  

एक अन्य मामले में मार्च 2024 में, एच.आई.वी. से पीड़ित एक सैनिक, जिसे सेना और फिर न्यायाधिकरण प्राधिकरण ने विकलांगता पेंशन देने से इनकार कर दिया था, को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पेंशन और 50 लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिया गया।

सूत्रों के अनुसार, देशभर की अदालतों में सेना द्वारा अपने ही विकलांग सैनिकों, विधवाओं और अन्य पेंशनभोगियों के खिलाफ बड़ी संख्या में याचिकाएं और अपीलें दायर की जा रही हैं, जो अन्य मंत्रालयों और विभागों के विपरीत है।

1965  भारत-पाक युद्ध में गंवाई एक आंख

22 सितंबर 1965 को, कैप्टन रीत एमपी सिंह अपनी टैंक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे, जिसे लाहौर सेक्टर में एक दुश्मन ठिकाने पर कब्जा करने का आदेश मिला था। फिरोजपुर जिले के माछिके गांव में, दुश्मन की स्थिति से 400 गज की दूरी पर, वे एक दुश्मन की बारूदी सुरंग क्षेत्र के सामने आ गए। भारी गोलाबारी के बावजूद, उन्होंने अपनी टैंक से उतरकर अपनी टुकड़ी के लिए उपयुक्त पार करने का स्थान खोजने का प्रयास किया। दुश्मन की तीव्र गोलीबारी के कारण वे गंभीर रूप से घायल हो गए, उनकी एक आंख चली गई और उनका पैर और कंधा टूट गया।

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