विचार डेस्कः भारतीय संस्कृति में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है। इंसान हो या भगवान, कोई भी आलोचना से परे नहीं रहा। लेकिन वामपंथियों ने जब से इस देश में जड़े जमाई हैं। उन्होंने स्वस्थ आलोचना का गला घोट दिया है। सार्वजनिक जीवन में मतभेद नहीं बल्कि अब मनभेद जन्म ले रहा है। मैं ही सही हूं, मेरा ही सही है। ये विचार वामपंथ की देन है। जबकि भारतीय संस्कृति में जो सही है वहीं मेरा है। इस विचार को पोषित किया जाता रहा है।
हिजाब विवाद को तूल देने के लिए कट्टरपंथी और उनके वकील कोर्ट में कुतर्क करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब के पक्षकार वकील ने कुतर्क गढ़ते हुए कहा है कि घूंघट, बिंदी, चू़ड़ी, क्रॉस और पगड़ी पर संस्थानों में प्रतिबंध नहीं है तो अकेले हिजाब को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? पहली बात स्कूली शिक्षा में घूंघट, बिंदी और चूड़ी पहनने नहीं दी जाती। रही बात पगड़ी की तो सिख धर्म में पगड़ी पहनना आवश्यक धार्मिक अभ्यास (Essential Religious Practice) के तहत आता है। इसकी इजाजत संविधान भी देता है। दूसरी बात हिजाब और बुर्का इस्लाम के आवश्यक धार्मिक अभ्यास के तहत नहीं आता।
कर्नाटक के उडुपी में ड्रेस कोड का विवाद, अब धार्मिक पहचान का मामला बन गया है। इसे धार्मिक पहचान बनाने में विपक्षी पार्टियों का बड़ा हाथ है। सबसे पहले इसमें नाम आता है, भारत की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस का, दूसरा नाम है ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिमीन का। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण नाम आता है, कट्टर इस्लामिक संगठन पॉपूलर फ्रंट ऑफ इंडिया का। इसकी स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के तार हिजाब विवाद से जुड़े पाए गए हैं।
कर्नाटक के प्राइमरी एंड सेकेंडरी एजुकेशन मिनिस्टर बीसी नागेश ने कहा है कि हिजाब विवाद के पीछे सीएफआई का हाथ है। सीएफआई को सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) का भी समर्थन प्राप्त है।
इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट की टिप्पणी भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कट्टर पंथियों को फटकार लगाई है। सुनवाई के दौरान जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने कहा कि हम कानून से चलेंगे। किसी के जुनून या भावनाओं से नहीं, जो संविधान कहेगा, वहीं करेंगे। संविधान ही हमारे लिए भगवद्गीता है। मैंने संविधान के मुताबिक चलने की शपथ ली है। भावनाओं को इतर रखिए, हम ये सब हर रोज होते नहीं देख सकते।
अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि इस विवाद को तूल देने की जरूरत क्यों आन पड़ी। इसी सवाल के भीतर सभी विवादों की जड़ छिपी हुई है। दरअसल, तीन तलाक पर कानून बनने के बाद, मुस्लिम महिलाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव बढ़ा है। तीन तलाक पर कानून बनने के बाद उनमें सामाजिक सुरक्षा की भावना बढ़ी है। पीएम मोदी के प्रति उसी विश्वास की भावना को खत्म करने के लिए ये प्रोपेगंड़ा गढ़ा गया है। यूपी में चुनाव चल रहा है।
सीएनएन की रिपोर्ट्स के मुताबिक, सबसे पहले हिजाब का प्रयोग मेसोपोटामिया, ग्रीक और फारसी लोग करते थे। माना जाता है कि शुरुआत में महिलाएं तेज धूप, बारिश और धूल आदि से बचने के लिए इसे पहनती थी। विशेष रूप से इसे सिर पर बांधा जाता था। वहीं, 13वीं शताब्दी के एसिरियन लेख में भी इसका उल्लेख मिलता है कि औरतों, बेटियों और विधवा महिला को हिजाब पहनना होता था। मगर वक्त के साथ धीरे-धीरे कुछ लोगों ने इसे धर्म से जोड़ दिया और महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया। हिजाब का शाब्दिक अर्थ है पर्दा।