देश नहीं तू प्राण है मेरा

कविताएँ
देश नहीं तू प्राण है मेरा
जमीं नहीं अभिमान है मेरा,

सब को तुने खुद में समाया,
ऐसा ह्रदय कहां से लाया ,

भाषा, धर्म, गोद में पलें हैं,
विश्व को तुने बिरले दिये हैं,

तेरी धरा पर राम हुए हैं
मर्यादा के शिखर छुए हैं,

कृष्णा ने यहां जन्म लिया है,
कर्म का संदेश दिया है,

महावीर जैन बुद्ध चले हैं,

अहिंसा के नए पथ बुने हैं,

राणा को कौन भुला है,
घास का खाना किसने चुना है,

शिवाजी की बात है न्यारी,
युक्ति, शक्ति का मिश्रण भारी,

पन्ना जैसा त्याग कहां है,

बेटे का सर अलग पड़ा है,


नानक गोबिन्द तेग हुए हैं,

सेवा के गणवेश हुए हैं,


गांधी पटेल सुभाष जहां हैं
क्षमा एकता जतन वहां हैं,
राज भगत बटु युवा बड़े हैं
हंसते हसंते फांसी चढे़ हैं,

आजाद से आजादी आई,
अन्तिम गोली खुद पर चलाई,

भारत तेरे रत्न अगणित,
किस-किस को लिखूं ये मन विचलित,

तेरे आगे शीश नवाता,
मुझे मिला अपनी मिट्टी में दाता,

स्वतंत्रता की बेला आई,
सभी को गणतंत्र की बधाई।।
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।

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