संसद का पिछला सत्र और अब यह शीतकालीन अत्र राजनीती की भेट चढ़ने जा रहा है। पिछले सत्र में भी अहम बिल संसद में शोर गुल की भेट चढ़ गए थे और लगता है इस बार भी ऐसा ही होगा। सरकार की कोशिश के बावजूद विपक्ष संसद ना चलने के अपने अघोषित लड़ाई में जीत के करीब है खास कर कांग्रेस शोर गुल मचाने में और संसद नहीं चलने में अव्वल है।
कांग्रेस विरोध कर रही है और संसद चल नहीं रही है। विरोध क्यों कर रही है शायद वह खुद भी नहीं जानती पर किसके फायदे के लिए कर रही है ये उसे भलीभांति पता हैं। एक बात तो साफ़ हो चुकी है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टी बीजेपी से डरी हुई है। भले ही वह इस बात को नकारते रहे। विपक्ष का यह फ़र्ज़ है कि वह सरकार पर अंकुश लगा के रखे और उसकी नीतियों की समीक्षा करे और हर वह मुद्दा उठाए जो देश और जनता के विरुद्ध हो लेकिन विपक्ष यंहा केवल विरोध के नाम पर विरोध कर रहा है।
कांग्रेस संसद ना चलने देने की जिम्मेदार है वह असमंजस की स्तिथि में दिख रही है। नेशनल हेराल्ड केस में पहले वह संसद को चलने नहीं देती और मोदी सरकार पर हिटलर बनने का आरोप लगाती है लेकिन जब देखती है कि जनता में इसका गलत सन्देश जा रहा है तो वह दूसरे मुद्दे को आगे कर देती है। पहली बार किसी विपक्ष को विरोध के लिए आधारहीन मुद्दे को आधार बनाते हुए देश देख रहा है। कांग्रेस बौद्धिक रूप से दिवालिये पन का शिकार हो गई है।
अगर वास्तु व सेवा कर इस सत्र में पास नही होता तो एक अखबार की खबर के मुताबिक देश को इससे 9 लाख करोड़ रूपये का नुक्सान उठाना पड़ेगा और साथ ही साथ भारत की और विश्वास की नजर से देख रहे पुरे विश्व के निवेशकों को भारी निराशा हाथ लगेगी और हमारी सकल घरेलु उत्पाद की दर 1.5% से 2% जो बढ़ सकती थी उसे भी झटका लगेग। इससे सबसे ज्यादा लाभ भारत के लोगो का होगा।
इसलिए कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि वह देश हित में अपनी संसद ना चलने देने की नीति का त्याग करे। वस्तु व् सेवा कर( GST) बिल अगर पास नहीं होगा तो चीज़े सस्ती भी नहीं होगी। इससे अंत में देश की जनता को ही हानि उठानी पड़ेगी।
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