दौड़ है दौड़ है बस दौड़,
जाना कहां, किस ओर है,
कामयाबी का रास्ता जानता हूं,
कहां है? उस ओर है, पहचानता हूं,
स्वाभिमान, सिद्धांत दूसरी ओर हैं,
जाते देख रहा हूं सभी को, यार दोस्त दुनिया को,
मैं खड़ा अकेला बीच में,
कुछ आशाओं के साथ,
कहां जाऊं? इस उलझन के साथ,
आवाज देते हैं दोनों मुझे, स्वाभिमान और सिद्धांत,
खींच लेती है उनकी आवाज मुझेे,
छोड़ देता हूं, बहुत पीछे, कामयाबी को ,
है मंजिल वहीं मेरी,
मगर मेरी राह पर नहीं है,
अनसुनी कर देता हूं कई बार उनकी आवाज को मैं ,
पर मन वहीं छोड़ देता हूं,
वो दोनों अकेले हैं, याद रहता है मुझे,
कामयाबी के रास्ते पर तो मेलें हैं,
लौट आता हूं मैं दोनों के पास,
कशिश कामयाबी की भी है मुझे,
पर कैसे पाऊं तीनों का साथ ।।
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