बेरंग सी है जिंदगी कुछ रंग की तलाश में,
आज मैं भी निकला हूं अपने वक्त की तलाश में, कहते तो हैं सब हम तेरे हैं,
निकल जाते सब मौजों की तलाश में, पलट कर मैंने भी कभी देखा नहीं,
जिसनें जाना है, क्यों नम आंख हो उसकी आस में, मैं देता वही हूं जो मिलता है मुझको,
तुम सियासत करते रहे, मैं रहा शिकायत की आस में, तुम गिला करते तो अच्छा था, तुम फरेब करते रहे,
मैं रहा ताउम्र दोस्ती की लिहाज़ में, लोग मेरे बदलने में अब सियासत देखते हैं,
मैं बदला सियासी नज़र जांचने में ।।
आज मैं भी निकला हूं अपने वक्त की तलाश में, कहते तो हैं सब हम तेरे हैं,
निकल जाते सब मौजों की तलाश में, पलट कर मैंने भी कभी देखा नहीं,
जिसनें जाना है, क्यों नम आंख हो उसकी आस में, मैं देता वही हूं जो मिलता है मुझको,
तुम सियासत करते रहे, मैं रहा शिकायत की आस में, तुम गिला करते तो अच्छा था, तुम फरेब करते रहे,
मैं रहा ताउम्र दोस्ती की लिहाज़ में, लोग मेरे बदलने में अब सियासत देखते हैं,
मैं बदला सियासी नज़र जांचने में ।।
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।