आज जब सुबह का समाचार पत्र पढ़ रहा था तो ये देख कर बड़ी हैरानी हुई कि कुछ लोग इस बात पर वाद विवाद कर रहे थे कि जन गण पर अगर कोई खड़ा नहीं होता तो क्या हुआ ? यह विवाद शुरू हुआ मुंबई से जंहा एक परिवार को थिएटर से इसलिए बाहर कर दिया क्योकि वह राष्ट्र-गान के सम्मान में खड़ा नहीं हुआ।
यह अब विवाद बन गया है कि उसे बहार क्यों किया? क्या आप को लगता है कि यह विषय विवाद का है अगर इस पर भी विवाद होगा तो लगता है हमारे देश के लोग भोगी हो गए है और अपने आलस के रोगी हो गए है। जिसमे वे अधिकारों की मांग तो करते है सविधान का हवाला देकर, पर उसी सविधान ने उन्हें जो नागरिक के कर्तव्य बताए है। उस पर कभी बात नहीं करते। आज तक मैंने किसी भी बुद्धिजीवी को नागरिक के कर्तव्य के ऊपर बात करते नहीं सुना। सभी सविधान में दिए नागरिक अधिकारों पर वाद विवाद करते है क्यों वो ये बात नहीं करते कि अगर आप अपने नागरिक कर्तव्य को नहीं निभाते तो आप नागरिक अधिकारों के भी अधिकारी नहीं है।
मै इस बात पर पूरी तरह से सहमत हूँ अनुपम खेर जी से जो उन्होंने इस पर कहा “सवाल ये नहीं है कि किसी को दबाव में खड़ा किया, यह राष्ट्र-गान है और आप को खड़ा होना पड़ेगा यदि आप एक भारतीय है ओर होना ही चाहिए। इस पर कोई चर्चा नहीं होनी चाहिए। मैंने अपने बच्चे को सिखाया है और मुझे यकीन है हर भारतीय माता-पिता यही करते है।“
रवीना टंडन ने अपने ट्वीटर पर लिखा है कि “दुःख का दिन भारत के लिए, जब हम इस पर विवाद करते है कि हमे यह अधिकार है की हम अपने राष्ट्र-गान का सम्मान करे या ना करे। मै एक भारतीय हूँ मै अपना कर्तव्य निभाऊंगी।“
यह विवाद बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। राष्ट्र-गान के सम्मान के ऊपर विवाद होना क्या आप कुछ समय अपने देश को नहीं दे सकते।
एक अन्य अभिनेता रजत कपूर का इस पर क्या विचार है देखे
“देश का सम्मान करना न करना किसी की अपनी निजी बात नहीं है क्योकि ये मेरी भावनाओं को आहात करती है और सिर्फ मेरी ही नहीं जो भी लोग इस देश से प्यार करते है। उन सबकी भावनाओं को आहात करती होगी। किसी के ग्रन्थ के पन्ने फट जाते है तो प्रदेश में अराजकता फ़ैल जाती है,। किसी के पैगम्बर का कार्टून छपता है तो भावनाएँ आहात होती है। पर जब कोई इस देश का सम्मान नहीं करता तब किसी को दर्द नहीं होता और किसी की भावनाएँ आहात नहीं होती यह विचारणीय विषय है।“