देश में जो आज हो रहा है वह एक खतरे की चेतावनी है। यह हमे सावधान करता है। हमे अपनी आँखे खोलने को मजबूर करता है कि आखिर देश में इतना हो-हल्ला जो मचा हुआ है क्यों ? यंहा पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि ये हो-हल्ला मचाने वाले कौन है ? कौन लोग है जो अपनी राजनीती चमकाने के लिए देशविरोधी ताकतों को नैतिक रूप से सहयोग कर रहे है ? सबसे बड़ी और अहम बात यह है कि बहस इस बात पर नहीं हो रही की ये कौन लोग है जो देश को टुकड़े में बाटने का नारा लगा रहे है ? इसकी बर्बादी की कामना करते है। बहस इस पर हो रही है कि छात्र को गिरतार क्यों कर लिया ?
अब इस घटना क्रम को समझने की कोशिश करते है। 9 फरवरी को 2016 को जे एन यु में देश विरोधी नारे लगते है देश को तोड़ने की बात की जाती है। तब हमारे बुद्धिजीवी वर्ग में से किसी ने भी इसकी एक सुर में विरोध नहीं किया। न ही किसी विपक्षी पार्टी का इसमें कोई बयान सामने आया। सभी लोग चुपचाप थे परन्तु जैसे ही केंद्र ने इस देशविरोधी गतिविधियों के पीछे किसका हाथ है जो लोग जे एन यु में देश विरोधी नारे लगा रहे थे। उन्हें ग्रिफ्तार किया। सभी बुद्धिजीवी वर्ग अपनी नींद से जाग गए। राजनीतिक पार्टियो की ब्यान बाज़ी शुरू हो गई।
सभी पार्टियो के लोग चाहे वो आम आदमी पार्टी हो या कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टी या तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अपनी नींद से जाग गए। सभी ने एक सुर में देश विरोधी लोगो का साथ दिया। राहुल ग़ांधी कहते है छात्रों को दबाया जा रहा है। केजरीवाल कहते है मोदी को छात्रों से पंगा महंगा पड़ेगा। ये किस प्रकार की राजनीती है ? जहाँ देश को गाली देने वालो पर, देश को तोड़ने वालो पर, सिर्फ इतना कह कर अपना पल्ला छाड़ लेते है कि हम ऐसी किसी भी घटना का समर्थन नहीं करते। जब समर्थन नहीं करते तो विरोध प्रदर्शन क्यों हो रहा है ? उनके साथ जाकर फोटो क्यों ली जा रही है ? पुलिस को अपना काम करने दे अगर कोई निर्दोष है तो वह कोर्ट से छूट जाएगा। आप कोर्ट से बाहर ही अपनी जरूरत के अनुसार दोषी और निर्दोष साबित करने लगते है।
ईशरत जहाँ का केस सबको याद होगा। कोई उसे शहीद बता रहा था तो कोई उसे बिहार की बेटी बता रहा था। तब यह बुद्धिजीवी लोग उसे के समर्थन में उतार आये थे परन्तु अंत में हुआ क्या ? उसकी असलियत सामने आई और वह आतंकी साबित हुई। पाकिस्तान की एक पत्रिका जो एक आतंकवादी संघठन चलता है ने ईशरत को अपना शहीद करार दिया था। लेकिन किसी बुद्धिजीवी ने इस पर कुछ नहीं बोला।
हमारे देश का एक बहुत बड़ा बुद्धिजीवी बिका हुआ है और वह खबरों का व्यसायिकरण कर रहा है। देश की जनता को यह समझना होगा कि जब तक देश की जनता व्यक्तिगत स्तर पर इसका विरोध शुरू नहीं करेगी तब तक यह तथाकथित बुद्धिजीवी लोगो पर दबाव नहीं बनेगा। यह दबाव राजनितिक पार्टियो पर भी पड़ना चाहिए तभी ये पार्टिया देश विरोधी तत्वों को प्रोत्साहन देना बंद करेगी।