नेशनल डेस्कः भारत को आजाद हुए आज 73 साल हो गए हैं। लेकिन अतीत में की गई गलतियों का खामियाजा भारत आज भी भुगत रहा है। सीमा पर चीन-पाकिस्तान से मिलती चुनौतियां हो या नेपाल का चीनी पाले में जाने का डर या हिंद महासागर में चीनी नौसेना की बढ़ती गतिविधियां। इनके मूल में जाएंगे तो भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की अदूर्शिता ही पाएंगे। नेहरु ने विश्व नेता बनने के चक्कर में भारत की साख और उसके हितों को कई बार अनदेखा किया है। आइए जानते हैं इन्हीं गलतियों को विस्तार से। साथ ही मौजूदा वक्त में भारत को इनका क्या नुकसान उठाना पड़ रहा है।
1. नेहरु जानते थे जम्मू-कश्मीर पर होगा कबाइली हमला, नहीं उठाया कोई कदम
भारत को आजाद हुए अभी 2 महीने ही हुए थे कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर को हथियाने की एक बड़ी साजिश रच दी। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर हथियाने के लिए ऑपरेशन गुलमर्ग चलाया। इसके तहत 22 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर पर कबाइलियों का हमला कराया। यह हमला पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र के 22 कबिलों की मदद से अंजाम दिया था। ऑपरेशन गुलमर्ग के लिए पाकिस्तान के वित्त मंत्री गुलाम मोहम्मद ने सरकारी खजाने से 3 लाख रुपए की सहायता दी थी। ऑपरेशन गुलमर्ग की जानकारी खुद पाकिस्तानी सेना के पूर्व अफसर मेजर जनरल अकबर खान ने अपनी किताब ‘Raiders In Kashmir’ में दी है।
हमला होगा इसकी जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरु को थी। लेकिन उन्होंने इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। कबाइली हमले में जम्मू-कश्मीर में करीब 30 से 40 हजार लोग मारे गए। 26 अक्टूबर को राजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय पत्र पर साइन कर दिए। इसके एक दिन बाद भारत ने अपनी सेनाएं उतार दी। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के करीब 91 हजार वर्ग किलोमीटर भाग पर कब्जा कर चुका था।

मौजूदा स्थितिःसमय रहते अगर नेहरु कबाइलियों को रोकने के लिए कदम उठा लेते तो POK (Pakistan Occupied Kashmir) समेत पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होता। भारत मध्य एशिया तक जमीनी मार्ग से जुड़ा होता। उसके लिए समुद्री मार्ग की निर्भरता कम होती। जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति इस प्रकार है-
कुल क्षेत्रफलः 2,22,236 वर्ग किलोमीटर ( 100 फीसद ),
पाकिस्तान के कब्जे में कश्मीरः 78, 114 वर्ग किलोमीटर ( 35.15 फीसद ),
पाकिस्तान ने चीन को दियाः 5, 180 वर्ग किलोमीटर ( 2.21 फीसद ),
चीन के कब्जे मेंः 35,555 वर्ग किलोमीटर ( 16.92 फीसद ),
भारत के पासः 1.01,387 वर्ग किलोमीटर ( 45.64 फीसद )
2. भारतीय सेना के बढ़ते कदमों को रोक कर जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को यूएन में ले जाना
जम्मू-कश्मीर के मसलें पर नेहरु एक के बाद एक गलती करते चले गए। उन्होंने पाकिस्तानी फौज द्वारा कब्जाई जमीन को वापस लेने के स्थान पर। इस मुद्दे को यूनाइटेड नेशनल (यूएन) ले गए। इसके लिए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी नेहरु को रोकने की कोशिश की, लेकिन वह विफल रहे।
जब भारतीय फौज कबिलाईयों को जम्मू-कश्मीर से पीछे धकेल रही थी। तो नेहरु ने शेख अब्दुल्ला की बातों में आकर सेना को जहां हैं वहीं, रुकने का आदेश दे दिया। जबकि तत्कालीन सैन्य अधिकारी भी नेहरु के इस फैसले से नाखुश थे। जहां सेनाएं रुक गई उसे ही आज हम LoC (Line of Control) के रूप में जानते हैं। सैन्य अधिकारी चाहते थे कि 10 दिन और मिल जाएं तो वे कबिलाइयों को पूरी तरह से निकाल फेकेंगे।
मौजूदा स्थितिः भारत-पाकिस्तान संबंधों को आज भी यहीं मुद्दा सबसे अधिक प्रभावित करता है। इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द एक-दूसरे के प्रति दोनों देशों की विदेशनीति घुमती है। इसी के चलते भारत और पाकिस्तान के बीच 1965, 1971 और 1999 में जंग हो चुकी है। इसी के चलते पाकिस्तान ने भारत में आतंकवाद फैलाना शुरु किया।
3. नेपाल के भारत में विलय को ठुकराना
वर्ष 1952 में नेपाल के तत्कालीन राजा त्रिभुवन विक्रम शाह ने पंडित जवाहर लाल नेहरु को नेपाल का भारत में विलय का प्रस्ताव दिया था। लेकिन नेहरु ने खुद चलकर आए इस मौके को गवां दिया। उन्होंने उनके प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि नेपाल भारत विलय से दोनों देशों को फायदे के बजाय नुकसान होगा। इससे नेपाल का टूरिज्म भी बंद हो जाएगा।

मौजूदा स्थितिः मौजूदा समय में नेपाल के कम्यूनिस्ट नेता चीन की गोद में बैठकर भारत विरोधी रवैया अपनाए हुए हैं। साथ ही वहां के वामपंथी जनता के मन में भारत के प्रति बैर पैदा करने की भरपूर कोशिश में है। इससे भारत के रणनीतिक हितों को नुकसान हो रहा है। सीमा पर एक मौर्चा और खुल गया है। अगर नेपाल भारत का हिस्सा होता तो चीन वहां आसानी से भारत विरोधी गतिविधियां नहीं कर पाता।
4. चीन के लिए यूएन सुरक्षा परिषद की सीट 2 बार ठुकराई नेहरु ने
विश्व नेता बनने के लिए नेहरु ने एक और बड़ी गलती की। अगर यह गलती न की होती तो संभवतः चीन 1962 में भारत पर हमला करने से भी बचता और भारत की आज स्थिति कई मायनों में विश्व पटल पर और मजबूत होती। 1950 के दशक में अमेरिका भारत को यूएन सिक्योरिटी काउंसिल का स्थायी सदस्य बनाना चाहता था। लेकिन नेहरु ने चीन की खातिर अमेरिका के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
दूसरी बार वर्ष 1955 में सोवियत प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन ने नेहरु को सुझाव दिया कि अगर भारत चाहे तो उसे जगह देने के लिए सुरक्षा परिषद में सीटों की संख्या 5 से बढ़ा कर 6 की जा सकती है। लेकिन नेहरू ने बुल्गानिन के सुझाव को ठुकराते हुए जवाब दिया कि जब तक कम्युनिस्ट चीन को यूएन सिक्योरिटी काउंसिल का स्थायी सदस्य नहीं बनाया जाता, भारत भी सुरक्षा परिषद में अपने लिए कोई स्थायी सीट नहीं चाहता। बता दें कि उस समय ताइवान भी सिक्योरिटी काउंसिल का स्थायी सदस्य था।
मौजूदा स्थितिः अब इसी सिक्योरिटी काउंसिल का स्थायी सदस्य बनने के लिए भारत पिछले कई वर्षों से प्रयास कर रहा है। लेकिन अभी तक सफल नहीं हुआ है। चीन यूएन सिक्योरिटी काउंसिल का सदस्य बनने के बाद भारतीय हितों को ही नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब उसने वीटो कर भारतीय हितो को चोट पहुंचाई है।
5. गिफ्ट में कोको द्वीप दिया म्यांमार को, अब चीन कर रहा इस्तेमाल
नेहरु ने रणनीतिक रूप से अहम कोको द्वीप को म्यांमार को दे दिया था। कोको द्वीप अंडमान निकोबार द्वीप समुह का हिस्सा था। यह कोलकाता से 1255 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में स्थित है। पंडित नेहरु की रणनीतिक समझ की कमी के कारण दक्षिण एशिया के सबसे प्रमुख रणनीतिक द्वीपों में से एक कोको द्वीप को भारत ने खो दिया।

मौजूदा स्थितिः म्यांमार ने यही द्वीप चीन को दे दिया। आज चीन इस द्वीप का इस्तेमाल भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए करता है। साथ ही डीआरडीओ के मिसाइल प्रोग्राम पर नजर रखता है। इसके अलावा हिंद महासागर में गतिविधि के लिए चीन को इस द्वीप से बहुत मदद मिलती है। अगर यह द्वीप हमारे पास होता तो चीन को हिंद महासागर में रुकने की जगह नहीं मिलती और हमारी स्थिति और मजबूत होती।
6. भारत के दूसरे कश्मीर कही जाने वाली काबू वैली म्यांमार को दी
नेहरु की भूल का एक उदाहरण काबू वैली भी है। मणिपुर स्थित काबू वैली को नेहरु ने वर्ष 1954 को मित्रता के तौर पर म्यांमार को दे दिया था। इस वैली के विषय में कहा जाता है कि दुनिया में कश्मीर के बाद खूबसूरती में काबू वैली का ही स्थान आता है। इसे दूसरा कश्मीर भी कहा जाता है। म्यांमार ने इसका एक हिस्सा चीन को दे दिया है जिसका इस्तेमाल वह अपने सामरिक हितों के लिए कर रहा है।
मौजूदा स्थितिः मणिपुर से लगता यह हिस्सा आज चीन के पास है। जिसका इस्तेमाल वह भारत विरोधी गतिविधियों के लिए भी कर सकता है। साथ ही युद्ध की स्थिति में वह इधर भी एक मोर्चा खोल सकता है।
7. तिब्बत पर चीनी कब्जे को होने देना
चीन भौगोलिक रुप से भारत का कभी भी पडोसी देश नहीं रहा। लेकिन 1954 में नेहरू ने तिब्बत को एक समझौते के तहत चीन का हिस्सा मान लिया। यह रणनीतिक और एहतिहासिक रूप से नेहरु की सबसे बड़ी भूल थी। इससे चीन भारत का पड़ोसी बन गया। साथ ही उसकी जमीन हथियाने की ललक भी बढ़ गई। आज वह भारत के अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत कह कर उस पर अपना दावा ठोकता है। इसके अलावा सीमा पर भारत के साथ तनाव भी रखता है।

मौजूदा स्थितिः तिब्बत को चीन का हिस्सा मानने का ही परिणाम है कि चीन आज आक्साई चीन को अपना बताता है। साथ ही लद्दाख में उसकी सेनाएं भारतीय जमीन पर घुसपैठ करती हैं। सीमा पर चीन से तनाव का मूल कारण नेहरु का चीनी कब्जे को तिब्बत पर होने देने का ही परिणाम है।