गुरुग्राम डैस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को गुरुग्राम में देश की सबसे अग्रणी शिक्षण संस्था एसजीटी विश्वविद्यालय में सम्मेलन ‘विविभा -2024’ में भारत की विकास यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत लंबे समय से विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी माना जाता था लेकिन बाद में पर्यावरण संबंधी समस्याएं भी देश में पैदा होने लगीं। केवल चार फीसदी लोग 80 फीसदी संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं
भागवत ने कहा, अगर हम 1ईस्वी से लेकर 16वीं सदी तक की बात करें, तो भारत हर क्षेत्र में अग्रणी था। हमने पहले ही कई चीजों की खोज कर ली थी। लेकिन फिर हम रुक गए और इसी वजह से हमारा पतन शुरू हो गया। उदाहरण के तौर पर भारत में खेती 10 हजार वर्षों से हो रही है। लेकिन कभी भी मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण की समस्या नहीं थी। लेकिन जब बाहर से खेती आई, तो इन समस्याओं ने 500-600 वर्षों में सिर उठाया। इसका मतलब कही न कहीं हमारे दृष्टिकोण में कमी थी, जिसके कारण एकतरफा विकास हुआ। भारत में विकास को समग्र रूप से किया जाना चाहिए।
अपने संबोधन में उन्होंने यह भी बताया कि आजकल विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच बहस हो रही है। लेकिन दोनों को एक साथ करना जरूरी है। उन्होंने कहा, आजकल यह बहस हो रही है कि हमें विकास करना चाहिए या पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए, जैसे हमें एक चुनना हो। लेकिन यह सवाल नहीं है कि मानव जीवन में हमें एक को चुनना है। बल्कि हमें दोनों को साथ करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि केवल चार फीसदी लोग 80 फीसदी संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं और लाठी का इस्तेमाल कर यह विकास लोगों पर थोपने की कोशिश की जा रही है। जो लोग तकनीकी विकास की वकालत करते हैं, वे केवल चार फीसदी लोग हैं। लेकिन उन्हें 80 फीसदी संसाधनों की जरूरत होती है और उन संसोधनों को पाने के लिए वे कई लोगों पर दबाव डालते हैं। विकास के लिए लोग बहुत मेहनत करते हैं और दिल से काम करते हैं। लेकिन उन प्रयासों का फल बहुत कम लोग ही पाते हैं।