एडिटोरियल डेस्कः किसान आंदोलन को 51 दिन बीत चुके हैं। लेकिन इन 51 दिनों में किसान आंदोलन के बदलते रंग मन में सवाल खड़े करते हैं। खालिस्तान जिंदाबाद, हाय-हाय मोदी मर जा तू, देशद्रोह के आरोपितों को छोड़ने की बात, खालिस्तानी आतंकियों के नाम से लंगर, उनसे जुड़ा साहित्य खुले रूप से बिकना, मोदी को इंदिरा की तरह ठोकने की धमकी देना, इमरान खान अच्छा मोदी गंदा, हिंदू गद्दार है उनकी बेटियां बेटियां टके-टके में बिकती थी और न जाने इस आंदोलन की आड़ में क्या-क्या कहा गया। अगर इन सब बातों पर गौर किया जाए तो ये किसान आंदोलन कम बल्कि विपक्ष, वामपंथ और खालिस्तानियों की प्रयोगशाला अधिक लगता है।
सिख फॉर जस्टिस जैसे आतंकी संगठनों का इंडिया गेट पर खालिस्तानी झंडा लहराने वाले को 2.5 लाख अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा करना, गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली को हर संभव मदद देना। लेकिन इसके खिलाफ किसान नेताओं का एक शब्द नहीं कहना और उल्टा ट्रैक्टर रैली पर अड़े रहना, मन में आंदोलन के प्रति सवाल खड़े करता है। दूसरी ओर पंजाब के भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष जसकरन सिंह कहान का खुले रूप से खालिस्तान को समर्थन और ट्वीटर पर खालिस्तान को बढ़ावा देने वाले ट्वीट एक बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने किसानों नेताओं और सरकार के बीच विवाद को सुलझाने और कानूनों की समीक्षा के लिए 4 सदस्य कमेटी का गठन किया था। इसमें शामिल भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने कमेटी पर संदेह जताने वालों पर सवाल खड़े किए थे। लेकिन खालिस्तानियों द्वारा दी गई धमकी के बाद उन्होंने खुद को कमेटी से अलग हुए कहा, मैं किसान और पंजाब के प्रति वफादार हूं। लेकिन किसी ने भी मान से यह नहीं पूछा कि 24 घंटे के भीतर ऐसा क्या हो गया कि समर्थन करते-करते अपना नाम वापस ले लिया।
वामपंथी नेताओं के प्रभाव में आकर किसान नेता जिन कारोबारियों को दिन भर कोस रहे हैं, उन्हीं के बनाए ट्रैक्टरों को लेकर किसान नेता रैली निकालने की बात पर अड़े हैं। पश्चिम बंगाल में इन्हीं वामपंथियों ने मजदूरों और मालिकों के बीच लड़ाई करवाई थी जिसके नुकसान से पश्चिम बंगाल अभी तक नहीं उभर पाया है। वामपंथी, वहीं मॉडल देश में खड़ा करने की कोशिश में लगे हैं। पंजाब में यह मॉडल हिट हो रहा है। 24 घंटे के भीतर रिलायंस के 1600 से अधिक टॉवरों को निशाना बनाना इस बात की गवाई है। हमें यह समझना होगा कि देशहित के लिए किसान जितना जरूरी है उसना ही कारोबारी वर्ग भी।
हक के लिए आंदोलन करना किसानों का अधिकार है। लेकिन उनके आंदोलन का लाभ देश विरोधी न उठा पाएं ये जिम्मेदारी भी किसानों की ही है। आज किसान नेताओं और सरकार के बीच 10वें दौर की वार्ता होनी है। लेकिन ठोस नतीजे की संभावना कम ही है।