धर्म डेस्कः भारत में मदिंरों को मिलने वाले दान और चढ़ावे पर सवाल किए जाते हैं। कई फिल्मों में मंदिरों को मिले दान को धंधा कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं मंदिरों में आने वाले दान का एक बड़ा हिस्सा कहां जाता है? भारत में मंदिरों पर किसका निंयत्रण है? किस राज्य ने मंदिरों को मिली जमीन को गोलफ् कोर्स बनाने के लिए दे दी है? अगर आप इन सब सवालों के जवाब चाहते हैं तो अंत तक इस वीडियों को जरूर देखें।
किसका है मंदिरों पर नियंत्रण
भारत में 33 कोटि यानी 33 प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा होती है जिनमें 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनी शामिल है। इनके भारत में लाखों मंदिर हैं। लेकिन इनके मैनेजमेंट का जिम्मा पूरी तरह से मंदिर कमेटियों के पास नहीं है। इसका अधिकार राज्य सरकारों ने अपने पास रखा है। देश के करीब 4 लाख मंदिर सरकारी निंयत्रण में हैं।
वहीं, अगर मस्जिद, गुरुद्वारों और चर्च की बात की जाएं तो इनपर सरकार का कोई अधिकार नहीं है। इन धर्मों से जुड़े लोग ही इन्हें मैनेज करते हैं और दान में मिले धन से अपने धर्म का प्रचार करते हैं।
कहां जाता है मंदिरों को मिला चढ़ावा
देश में ऐसे कई मंदिर हैं जहां हर साल अरबों रूपये का दान आता है। लेकिन ये भी एक सच्चाई कि इस दान का एक बड़ा हिस्सा मंदिर को न जाकर सरकारी खजाने में चला जाता है। उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश के तिरुपति तिरुमला मंदिर को हर साल 1300 करोड़ रुपए का दान मिलता है। लेकिन इसमें से 85 फीसदी धनराशि सीधी सरकारी खजाने में भेज दी जाती है। देश में यह अकेला ऐसा मंदिर नहीं है बल्कि हजारो मंदिरों का यहीं हाल है।
आंध्रप्रदेश सरकार ने मंदिरों की जमीन दी गोल्फ कोर्स के लिए
भारत एक सेकुलर देश है। यह सेकुलर शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना में नहीं था। इसे बाद में भारत की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने इमरजैंसी के दौरान संविधान में शामिल कर दिया था। लेकिन इसी सेकुलर देश में जहां अन्य धर्म की संपत्ति को राज्य सरकारे छू भी नहीं सकती। वहीं, मंदिरों को दान में मिली जमीन को आंध्रप्रदेश सरकार ने गोल्फ कोर्स बनाने के लिए दे दी। जबकि यह जमीनें दान दाताओं ने धार्मिक कार्यों के लिए दी थी। बताया जाता है कि ऐसे 10 मंदिर हैं जिनकी जमीनों को गोल्फ कोर्स के लिए दे दिया गया है।
सरकारी कब्जे से मुक्त हो मंदिर
तमिलनाडु में सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने मंदिरों से सरकारी नियंत्रण हटाने का अभियान शुरू कर दिया है। ईशा फाउंडेशन ने तमिलनाडु का आँकड़ा देते हुए बताया कि वहाँ करीब 12000 प्राचीन मंदिर नष्ट होने की कगार पर हैं। क्योंकि ना वहाँ पूजा की जाती है और न ही उनका रख रखाव किया जाता है। 34000 मंदिर ऐसे हैं, जिन्हें 10 हजार रुपए वार्षिक के हिसाब से अपने कामकाज चलाने पड़ते हैं यानी प्रतिदिन दिन मंदिर के हिस्से में केवल 27 रुपये ही आते हैं। 37 हजार ऐसे मंदिर हैं जहाँ सिर्फ एक ही व्यक्ति के हाथ में पूजा समेत मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी है। यूनीसेफ एक रिपोर्ट ने ऐतिहासिक मंदिरों की हो रही दुर्दशा पर तमिलनाडू सरकार पर सवाल खड़े किए हैं।
VHP चलाएगा मंदिरों को सरकार से मुक्त कराने का अभियान
श्रीराम मंदिर निर्माण के सफल आंदोलन के बाद विश्व हिंदू परिषद ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के संकेत दे दिए हैं। VHP के केंद्रीय महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा है कि देश की विभिन्न राज्य सरकारों ने करीब 4 लाख मंदिरों पर कब्जा कर रखा है। हम इन राज्य सरकारों से अपील करते हैं कि इन मठों-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए।
जल्द ही इस संबंध में राज्य सरकारों से बात की जाएगी। अगर ज़रूरत पड़ती है तो इसके लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ी जाएगी और सुप्रीम कोर्ट में केस दर्ज किया जाएगा। मंदिरों के दान का इस्तेमाल हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए होना चाहिए। उन्होंने विभिन्न राज्य सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकारों ने मंदिरों पर कब्जा कर रखा है। यह भारतीय संस्कृति को समाप्त करने की साजिश है। राज्य सरकारों द्वारा मनमाने ढंग से मंदिरों की सम्पत्तियों का उपयोग किया जा रहा है।
वहीं, दूसरे धर्मों-सम्प्रदायों के धार्मिक स्थलों का प्रबंधन का जिम्मा उनके धर्म से जुड़े लोगों के पास है। तो फिर हिन्दुओं के लिए ही इस तरह की बंदिश क्यों जारी हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिन्दुओं द्वारा मंदिर को दिए गए धन पर सरकार का अधिकार नहीं होना चाहिए।