एडिटोरियल डेस्कः भारत सरकार भले ही स्वच्छ भारत अभियान को जन आंदोलन बनाने के लिए प्रयासरत है लेकिन कहीं न कहीं अब यह आंदोलन दम तोड़ता नजर आ रहा है। केवल जन भागीदारी से इस अभियान को सफल नहीं बनाया जा सकता। इसमें सरकार की भूमिका की भी उचित भागीदारी आवश्यक है। हाल ही में, देश के 434 शहरों का सर्वे हुआ, जिन्हें साफ-सफाई के विभिन्न मानकों पर परखा गया। इसमें देश की राजधानी ही साफ-सफाई की सूची में पहले 50 में अपना स्थान नहीं बना पाई तो देश के बाकी आम शहरों से क्या उम्मीद की जा सकती है?
फिर भी इस सूची में मध्य प्रदेश का इंदौर शहर पहले स्थान पर जगह बनाने में सफल रहा जबकि मध्य प्रदेश का भोपाल व आंध्र प्रदेश का विशाखापटनम क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे। उत्तर प्रदेश का गोंडा फिसड्डी साबित हुआ। गुजरात के 12 व मध्य प्रदेश के 11 शहर टॉप 50 शहरों की सूची में शामिल है। उत्तर प्रदेश का वराणसी को अगर छोड़ दे तो कोई भी शहर टॉप 50 में स्थान नहीं बना पाए और हरियाणा का तो एक भी शहर नहीं है। अगर आंकड़ो को ध्यान से देखे तो जो शहर सूची में टॉप रहे, वहां की जनता के साथ-साथ सरकार भी धन्यवाद की पात्र हैं।
देखनी वाली बात यह भी है कि जनता हो या सरकार इनकी प्राथमिकताओं में साफ-सफाई कभी नहीं होती। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत हैं। केवल मानसिकता ही नहीं बल्कि गांव शहरों की सफाई के लिए आधुनिक तकनीक के साथ-साथ वर्कफोर्स को भी बढ़ाना होगा। तभी हम 2019 में गांधी जी को उनकी 150 वीं जयंती पर स्वच्छ भारत व स्वस्थ भारत का तौफा दे सकेंगे।