फतेहबाद में हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज, जिला शिकायत एवं जनसम्पर्क समिति के दौरान एक महिला आईपीएस ऑफिसर संगीता रानी कालिया से, अवैध शराब पर सवाल पूछा। जिसपर दोनों, मंत्री जी और महिला ऑफिसर एक दुसरे पर सवाल उठाने लगे। उसी बात से खफा होकर मंत्री जी ने महिला ऑफिसर को मीटिंग से बाहर जाने को कहा। इस पर ऑफिसर ने जाने से इनकार कर दिया। इससे नाराज मंत्री जी, मीटिंग बीच में ही छोड़ कर चले गए और इस बात को मुख्यमंत्री तक ले जान की बात कही। हरियाणा के मुख्यमंत्री जी ने इस पर कार्यवाही करते हुए महिला ऑफिसर का तबादला मानेसर में कर दिया।
इस घटना क्रम के बारे में तो सभी जानते है, परन्तु यहाँ पर इस घटना का थोडा सा विवरण देना जरुरी था। कल तक विपक्ष, सरकार पर अफसरसाही के ऊपर नकेल न कसने का आरोप लगा रहा था परन्तु आज वही विपक्ष ऑफिसर का समर्थन कर रहा है और उसे शाबाशी दे रहा है। चलो थोड़ी देर के लिए इस बात को अलग करके सोचते है कि कौन सही था और कौन गलत? बात इस पर करते है कि यह मुददा न तो महिला का था और न ही दलित का था। ये दोनों बाते कहाँ से आ गई? कि दलित का अपमान हुआ है। नेता जी को भरी सभा में ऐसा नहीं बोलना चाहिए था या एक महिला अधिकारी को ऐसा नहीं कहना चाहिए था। क्या यह घटना किसी महिला के अपमान से जुडी थी? नही, क्या यह घटना किसी दलित से जुडी थी? नहीं, क्या वह महिला अधिकारी वहाँ महिला होने की वजह से बैठी थी या अधिकारी होने की वजह से? क्या वह वहाँ दलित है इसलिए बैठी थी? सभी का उत्तर है नहीं ।
फिर भी इस घटना को उसी चश्मे से देखा जा रहा है। हरियाणा के SC/ST आयोग ने हरियाणा सरकार से इस बारे में विस्तार में जानकारी मांगी है।
घटना का राजनीतिकरण:-
यहाँ एक बात को समझना आवश्यक है, अगर अफसर जनता के चुने हुए, प्रतिनिधियों के सवालो का गैर जिम्मेदारी से उत्तर देंगे तो वह उस जनता की भी नहीं सुनेगे। जिनकी सेवा के लिए वे उस पद पर बैठे है। इस बात को हमे समझना होगा कि अवैध शराब पर ये कह देना की “हमने 2500 पर्चे काट दिए, अब हम क्या करे? उन्हें जान से तो नहीं मार सकते” कहाँ तक जायज है? क्या पुलिस की जिम्मेदारी ख़त्म हो गई पर्चे काट कर। जब जिला शिकायत एवं जनसम्पर्क समिति में कोई शिकायत ले कर आया है और वह कह रहा की इस मामले में हमने पुलिस को सूचित किया पर पुलिस की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिला तो उस समय वहाँ मौजूद महिला ऑफिसर को उस क्षेत्र के इंस्पेक्टर से जानकारी मांगनी चाहिए थी और शिकायतकर्ता के सहयोग की बात करनी चाहिए थी, पर वह अपनी सफाई में लग गई, यह मुददा अब मंत्री जी और अफसरशाही के बीच, खीच तान का लग रहा है जो अफसर मंत्री की नहीं सुन रहे। वो क्या एक आम और साधारण व्यक्ति की शिकायत पर क्या कार्यवाही करेगे ?
इस पर आईपीएस अफसर अशोक खेमका ने संगीता कालिया पर सवाल उठाए और ट्विटर के माध्यम से इस विषय पर अपना पक्ष रखा। कहा कि “क्या मंत्री एसपी को गलत आदेश दे रहे थे? जहाँ जनहित का मामला हो वहाँ विवाद पर राजनीतिक अनुकूलता बनाने के लिए पुलिस का उतरदायित्व सही नहीं है।”
इसी विवाद पर अन्य आईपीएस ऑफिसर, कासनी ने भी महिला ऑफिसर पर सवाल उठाए है।
अंत में, मै यही कहना चाहता हूँ कि जब भी कोई विवाद उठता है तो उस पर खेमे बंदी शुरू हो जाती है। वह महिला थी। वह दलित था। वह मुस्लिम है इसलिए उसके साथ ऐसा हो रहा है। क्यों नहीं हम किसी भी घटना पर निष्प्क्ष हो कर, अपने बयान देते है ? जब भी कोई घटना होती है, हम सभी खेमो में बंट जाते है, अगर कोई गलत है तो वह गलत है चाहे वह किसी भी धर्म और जाति का हो ।
इस बात के साथ, मै अपनी बात को यही ख़त्म करूँगा कि एक बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हेराल्ड मैकमिलन ने कहा था कि “संसद और राष्ट्र के प्रति विपक्ष के नेता की बड़ी और अहम जिम्मेदारी है विशेष परिस्थियों में, विशेषकर बुराई को प्रभावित करने वाले मामलो में, यद्यपि वह सरकार का आलोचक रहता है, लेकिन साथ ही उसे सरकार का समर्थन करना पड़ता है। यह जिम्मेदारी उसे शुद्ध हृदय से निभानी पड़ती है।”
परन्तु यहाँ पर लगता है कि विपक्ष यहाँ एक ही जिम्मेदारी निभा रहा है। वह है आलोचना की, चाहे वह केंद्र में हो या प्रदेश में।