अमेरिका में नवम्बर 2016 में प्रेसिडेंट के चुनाव होने है। उसी चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बयान दिया कि सभी मुस्लिमो को अमेरिका में आने पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। इसका खंडन सबसे पहले व्हाइट हाउस ने कर दिया। अन्य ने भी इस कथन की आलोचना की,
लेकिन यंहा यह ध्यान देने वाली बात यह है कि किसी ने भी इस पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प को साम्प्रदायिक नहीं कहा। डोनाल्ड ट्रम्प ने खुल कर बिना किसी लाग लपेट के ये सब कहा। उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 25% मुस्लिमो का मानना है कि अमेरिका ओर अमेरिका के लोगो के साथ हिंसा करना न्यायोचिंत है और उन्होंने आगे कहा कि ऐसी 1% मानसिकता वालो को भी हम बर्दास्त नहीं कर सकते क्योकि हमारे पास ओर कोइ रास्ता नहीं है।
इतना खुलकर और साफ शब्दों के इस्तेमाल के बाद भी, किसी ने भी उन्हें साप्रदायिक नहीं कहा, ना तो अमेरिका में और नहीं हिंदुस्तान में, जो इस्लाम के ठेकेदार है। वाइट हाउस ने इसे गैर-अमेरिकी विचार कहा है, जो अमेरिका के मूल्यों के विरुद्ध है। गौर करने वाली बात यह है की ये नहीं कहा की यह साप्रदायिक है।
जो मुस्लिमो के नेता है हिन्दुस्तान में, उन्होंने भी इसे साम्प्रदायिक नहीं कहा। डॉनल्ड् ट्रम्प खुले आम इस बात को कहा है, अगर ऐसा कोई हिन्दुस्तान में बोल दे तो “साप्रदायिकता” कहने वालो की बाढ़ आ जाती है।
अमेरिका की कुल जनसँख्या 31 करोड़ है। जिनमे 66 लाख मुस्लिम है लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प की इस बात पर आलोचना भले ही की गई हो परन्तु किसी ने भी इसे साप्रदायिक नहीं कहा। ये वंहा की राजनिति का स्तर है। हमे उनसे सीखना चाहिए।
हमारे देश में अगर किसी को फ्लैट ना मिले तो लोग इस छोटी घटना को भी प्राइम टाइम की डिबेट बना देते है। बड़े-बड़े लेक्चर होते है पर जब घटना झूटी निकलती है तो कोई सामने नहीं आता।