कब तक उड़ाएगे शांति के कबूतर ?

मेरी बात

 हाल ही में ग्लोबल टाइम्स न्यूज़ पेपर ने चीन में एक ऑनलाइन सर्वे किया जिसमें तीन सवाल पूछे गए थे। पहला सवाल था- आपका पडोसी देश किस तरह का होना चाहिए ? दूसरा, किस देश को आप अपने देश के साथ नहीं रखना चाहते ? तीसरा, किस देश को चीन के साथ रखना चाहते हो? इस वोटिंग प्रक्रिया में 20 हजार लोगों ने हिस्सा लियाआप को जान कर हैरानी होगी कि दस हजार चार सौ सोलह लोगों ने भारत को सिरे से नकार दियाइस परिणाम से साबित होता है कि भारत को चीन के आधे से ज्यादा लोगो ने ठुकरा दिया जबकि पाकिस्तान को चीनियों ने भारत से ज्यादा पसंद किया। भारत शांतिप्रिय होते हुए भी ना पसंद किया गया। 

भारत ने अपने 5000 हज़ार साल के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया। ताकतवर और सम्पन्न होने के बाद भी किसी को दबाया नहीं। जब अमेरिका जैसे देशों के लोग नंगे घुमा करते थे, उस समय भारत उत्तम कोटि के वस्त्र निर्यात करता था। हम अगर 1947 से लेकर आज तक का इतिहास उठा कर देखे तो भारत ने हमेशा शांति और सिद्धांतो की न केवल बात की है बल्कि उसे अपने व्यवहार से भी साबित किया है। 1948 में पाकिस्तान ने पीओके पर जबरन कब्ज़ा कर लिया। उसका 5180 sqkm हिस्सा 1963 में चीन को दे दिया जो आज अक्साई चीन के नाम से जाना जाता है। 
आपके सामने चीन का उदारण है जो 1937 में क्या था ? और आज क्या है ? और भारत की भौगोलिक स्थिति आज सबके सामने है। 



 कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह बात हर बार हर तरह से प्रत्येक नेता ने दोहराई है परन्तु कश्मीर किसके पास है। ये सब आप सभी जानते है। पाकिस्तान ने हम पर चार बार हमला किया। हमने हर हमले का उसे मुहतोड़ जवाब दिया लेकिन हर जीत से हमे मिला क्या कुछ नहीं। जिस कश्मीर के लिए उसने हमें युद्ध में झौका। लेकिन हमने क्या किया ? कुछ नहीं। जीत के बाद भी हम उससे गुलाम कश्मीर तक नहीं ले पाये। उसकी आर्थिक पक्ष मजबूत नहीं है, वह सेना में और ताकत में हमारे सामने कहीं नहीं ठहरता फिर भी वह कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा किये बैठा है और पुरे कश्मीर को लेने के लिए हमारे साथ चार युद्ध लड़ चका है। मैं पाकिस्तान के नेताओ को इसके लिए बधाई देना चाहता हूँ कि हर हार के बाद उन्होंने अपनी कोशिश नहीं छोड़ी और वह आज भी जारी है लेकिन हम क्या कर रहे है ? कुछ नहीं । 

तुलसीदास जी ने अपने दोहे में कहा था कि ” समरथ को नि दोष गोसाई” यह बात आज भी उतनी है मूल्य  रखती है जितनी आज से 500 साल पहले। 
मैं भारतीय नेताओ से एक बात कहना चाहता कि केवल कोरे सिद्धांतो से देश नहीं चला करते। चीन और अमेरिका का उदहारण हमारे सामने है। शांति का ठेका केवल भारत ने नहीं ले रखा है। अगर पाकिस्तान परमाणु सम्पन्न देश है, तो आप भी हो यह हमें याद रखना चाहिए। कहते है शांति के लिए भी युद्ध आवश्यक है। लगभग 60 वर्षो से हम शांति के कबूतर पाकिस्तान के साथ उड़ा रहे हैं पर हमें क्या मिला ? कुछ नहीं। 

तिब्बत का उदहारण दुनिया के सामने है। कभी राष्ट्र के रूप खड़ा ये देश आज चीन के कब्ज़े में है। किस देश ने इसकी मदद की किसी ने नहीं। आज दुनिया के नक़्शे से यह ख़त्म हो चका है। इसलिए आपको अपने हक़ के लिए खड़ा भी होना पड़ेगा और उसके लिए लड़ना भी पड़ेगा। हमे यह समझना होगा कि साधु का अपना धर्म होता है और राजा का अपना धर्म। अगर दोनों अपना धर्म नहीं निभाएगे तो न साधु बचेगा और न ही राजा। आज हम तिब्बत को भी देख सकते है और इज़राइल को भी इसलिए  

हमे पाकिस्तान के साथ शांति के कबूतर उड़ाने बंद करने चाहिए क्योकि य हम लगभग 60 साल से कर रहे हैं । हमें इज़राइल से सबक ले कर एक मिसाल कायम करनी चाहिए कि अगर भारत और भारतीय को छेड़ा तो भारत छोड़ेगा नहीं। 

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