शब्बीरपुर हिंसा के पीछे का सच

मेरी बात

महाराणा प्रताप की जयंती मनाने के लिए 5 मई को शब्बीरपुर के 20-25 युवक तेज आवाज में गाना बजाते हुए, पास के ही शिमलाना गांव जा रहे थे। शब्बीरपुर गांव के प्रधान ने तेज आवाज पर आपत्ति जताई व अपने साथियों समेत उसे रोकने की कोशिश की साथ ही पुलिस को इस बाबत सूचना दे दी। प्रधान का कहना था कि कार्यक्रम के लिए प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई थी। गांव का प्रधान अनुसूचित जाति का है। एसएसपी सुभाष चन्द्र दुबे के मुताबिक पुलिस ने मौके पर पहुंच कर डिजे बंद करवाया व उन्हें शिमलाना गांव के लिए रवाना करने लगे।  इसी दौरान कार्यक्रम में जाते लोगों (राजपूतों) पर छतों के ऊपर से दलित समुदाय के लोगों ने पथराव शुरू कर दिया । जिसमें राजपूत समुदाय के 16 लोग घायल हो गये व सुमित सिंह नाम के 27 वर्षिय राजपूत युवक की मौत हो गई। इसकी सूचना जब शिमलाना कार्यक्रम में मौजूद राजपूतों को पता चली तो वह बड़ी संख्या में आए और उन्होंने दलित समुदाय 15-20 घेरों ( वह स्थान जहां पर भुस व पिटौड़ा आदि रखे जाते हैं) में पथराव और आगजनी की। तभी से दोनों समुदाय के बीज तनाव की स्थिति बनी हुई है।

 

डीएम नागेंद्र व एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने बताया कि 9 मई को भीम आर्मी नाम के दलित संगठन ने सहारनपुर के गांधी पार्क में बिना अनुमति के 5 मई की घटना के खिलाफ महापंचायत का आयोजन रखा। जब पुलिस बिना अनुमति के हो रहे आयोजन को रोकने पहुंची तो वे लोग उग्र हो गए। उन्होंने वाहनो और पुलिस पर पथराव शुरु कर दिया, जिसमें ड़ेढ़ दर्जन बाइक, दो बसे, तीन कारें जलकर खाक हो गई। बस में मौजूद 46 यात्रियों ने किसी तरह अपनी जान बचाई। यात्रियों के मुताबिक 8-10 नकाबपोश लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया। एसपी सिटी और पत्रकारों पर भी हमला किया गया।

21 मई को हालात का जायजा लेने बसपा सुप्रीमो मायावती भी सहारनपुर के शब्बीरपुर व और चन्द्रपुरा पहुंची लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही चंद्रपुरा के दलितों ने राजपूतों के घर पर पथराव व आगजनी की। उसके बाद राजपूतों ने भी अपनी तलवारें निकाल ली। हालात एक बार फिर तनाव पूर्ण बन गए।

 

5 मई के बाद से एक के बाद एक हुई घटनाक्रम पर नजर डाली जाए तो यह एक बढ़ी राजनीतिक साजिश लगती है। भीम आर्मी की भूमिका  भी संदिग्थ है। भीम आर्मी के मुखिया चन्द्रशेखर आजाद ने एक ऑडियो रिलीज किया जिसमें अपने सभी दलित भाईयों को 21 मई को जंतर-मंतर पर इकठ्ठा होने का आह्वान किया। इस ऑडियो क्लिप में वह अपने आपको ‘एडवोकेट चन्द्रशेखर आजाद रावण’ कहता है। इसके बाद ‘नीला सलाम’ कहकर ऑडियो खत्म करता है। नीला सलाम ‘लाल सलाम’ से बहुत मेल खाता है। अपने नाम के साथ ‘रावण’ जोड़ना और हक की लडाई की बात करते हुए नक्सल आंदोलन को सही ठहराने की कोशिश करना और वामपंथियों संगठनों की तरफ से भीम आर्मी को मिल रहे समर्थन से लगता है कि यह समाज को बांटने साजिश की जा रही है।

 

आइसा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुचेता डे ने आईएएनएस से कहा, “हमारी मांग है कि भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद पर लगाए गए आरोप वापस लिए जाएं और दलित ग्रामीणों को निशाना बनाने वाले और उनके घरों को जलाने वाले तथाकथित ऊंची जाति के लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। जिस प्रकार इसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी) की छात्र इकाई ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन के सदस्य विरोध-प्रदर्शन में सक्रिय हैं व आइसा की राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान आ रहे हैं उससे दो समुदाय के बीच की खाई और बढ़ रही है।  

 

अब आप सोच रहे होगे कि अभी कोई चुनाव भी नहीं है तो इस में राजनीतिक साजिश का क्या औचित्य है?  यही समझने वाली बात है- उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा अपनी जमीन खोते जा रहे है। बड़ी संख्या में मुस्लिम और दलित बीजेपी का रुख कर रहे हैं और अब वामपंथी विचारधारा से भी अधिकतर युवाओं का मोह भंग हो रहा है और भाजपा को यूपी व देश के अन्य भागों में स्वीकारा जा रहा हैं। वह विपक्ष के लिए खतरें की घंटी हैं। इसी से पार पाने के लिए यह एक सोची समझी साजिश नजर आ रही है। अपने गिरते वोट बैंक और भाजपा के बढ़ते कद से निजात पाने के लिए, अपने वोट बैंक को एकजुट करना आवश्यक था। 2019 में भाजपा के विजयरथ को रोकने के लिए और हिंदु समाज के एक वर्ग को सर्वण समाज का ड़र दिखाकर काटना जरूरी था। दलित अस्मिता और अम्बेड़कर के नाम पर भीम आर्मी का मुखिया जिस प्रकार केंद्र में मोदी और प्रदेश में योगी पर सवाल खड़े कर रहा है। उसके अपने बयानों में मुस्लिम व दलितों की बात करना इस बात की पुष्टि करता है कि यह कोई दलित आंदोलन नहीं बल्कि साजिश है। जिसका आज नहीं तो कल सच सामने आ जाएगा। 

 

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