अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले ने एक बात तो तय कर दी है कि अब हमले की कड़ी निंदा करने का समय निकल गया है बल्कि कड़े फैसले लेने का समय आ गया है। आए दिन हो रहे आंतकी हमलों मे मरते जवानों से भारतीय जनता का सब्र अब टूट रहा है। विपक्ष में रहते हुए पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने का ख्वाब देखने वाले अब क्यों सिर्फ कड़ी निंदा कर, हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाते है।
सरकार में जो लोग है और जो सरकार में नहीं है सब की जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे हमलों में राजनीतिक लाभ-हानि की गणना छोड़कर, देश हित में एक होकर भारत के दुश्मनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का बिगुल बजाए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। हम इजरायल से अत्याधुनिक हथियार तो खरीद लेगे पर उन्हें चलाने का साहस कहाँ से लाएंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज ने आतंकी हमले से तीन दिन पहले आतंकवादी बुरहान वानी की मौत पर शोक जताया था। अगर ऐसी ही सोच वाले नेता देश को मिलते रहे तो हम हजारों साल तक भी अपने देश से आतंक का सफाया नहीं कर सकते।