विचार डेस्क: राजनीतिक क्षेत्र में धारणा या छवि काफी मायने रखती है। इसी छवि या धारणा के आधार पर चुनावों में जनता सरकारें चुनती है। चुनी हुई सरकारों से जनता अपने हितों को साधने की कोशिश करती है। यही हित-अहित चुनावों में मुद्दे के रूप में उभरते हैं। इन्हीं मुद्दों को लेकर विपक्षी पार्टी सत्ता पक्ष के खिलाफ जनमानस में माहौल तैयार करती है और चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करती है। लेकिन हरियाणा में बिखरा विपक्ष खट्टर सरकार के सामने सीधी चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं दिख रहा है। पार्टियों की भीतरी गुटबाजी और संगठन की कमी साफ झलकती है। इसके बावजूद प्रदेश में भाजपा के कोर वोटरों में पार्टी के प्रति कोई विशेष उत्साह नहीं है।
जनता भी अब पहले से अधिक समझदार हो चुकी है। उसे केवल क्षेत्रीय मुद्दें नहीं बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामले भी प्रभावित करते हैं। अब अधिक समग्र सोच के साथ मतदाता वोट करने लगेे हैं। वर्ष 2014 के चुनाव से पहले जनता के समक्ष कई घोटाले सामने आए थे। इससे कांग्रेस की छवि को गहरा धक्का लगा। लोगों के मन में कांग्रेस के प्रति गहरा अविश्वास पनप गया था। ऐसे में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा ने जनता के सामने एक नई उम्मीद के तौर पर पेश किया। इसमें सोशल मीडिया ने भी बड़ी भूमिका अदा की। इसका भाजपा ने भरपूर इस्तेमाल किया और सीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों का जमकर प्रचार किया। लोगों में भाजपा और मोदी के रूप में कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत विकल्प मिला। इसी के चलते केंद्र में और हरियाणा में भाजपा की सरकारें बनी।
हरियाणा में कमजोर लगने वाली भाजपा ने अकेले अपने दम पर वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में 90 में से 47 सीटें प्राप्त की। साल 1987 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 16 सीटें (कुल 20 सीट पर लड़ी थी) जीती थीं। ये भाजपा का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। लेकिन वर्ष 2014 में भाजपा ने रिकॉर्ड प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में भाजपा की विकासवादी छवि और धारणा का अहम योगदान था। वर्ष 2019 में भी भाजपा हरियाणा में सरकार बनाने में कामयाब हो गई। लेकिन मौजूदा स्थिति में कमजोर विपक्ष के बावजूद प्रदेश में भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं लग रही है।
सम्राट मिहिर भोज विवाद, नूंह हिंसा, मोनू मानेसर की गिरफ्तारी, अभिषेक चौहान समेत अन्य मृतक कार्यकर्ताओं के प्रति खट्टर सरकार की उदासीनता ने भाजपा के कोर मतदाताओं में रोष भर दिया है। वे खुलकर सोशल मीडिया पर भाजपा और खट्टर सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। इनमें आरएसएस के जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता भी शामिल हैं। यही जमीनी कार्यकर्ता भाजपा की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाते हैं। इन्हीं जमीनी कार्यकर्ताओं की नाराजगी आगामी विधानसभा चुनाव में खट्टर सरकार को भारी पड़ सकती है। इसी नाराजगी को दूर करने के लिए सीएम बीते मंगलवार की सुबह पानीपत में मृतक अभिषेक चौहान के घर नूंह हिंसा के 43 दिन बाद गए थे। उन्होंने परिवार को सांत्वना दी थी। लेकिन इसी दिन दोपहर में मोनू मानेसर को हरियाणा पुलिस ने पकड़ लिया। ( रवि प्रताप सिंह – ये लेखक के निजी विचार हैं।)