नेशनल डेस्कः भारत 15 अगस्त 2022 को अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। लेकिन इस आजादी के लिए अनेक वीरों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। आज ऐसे ही एक वीर की शौर्य गाथा को हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसके सामने भय भी एक कोने में दुबक कर बैठ गया था, जिसके साहस के सामने हर कोई हैरान था। देश की आजादी के लिए अपनी मौत का जश्न मनाने वाले इस वीर का नाम था खुदीराम बोस। 11 अगस्त को तड़के फांसी दी जाने वाली थी, लेकिन फांसी से पहले वाली रात में आम खाने की इच्छा और जेलर से मजाक कर जोर-जोर से हंसने की घटना खुदीराम बोस की सहजता और निडरता की तस्वीर थी।
बता दें कि 11 अगस्त 1908 वहीं दिन है, जब महज 18 वर्ष की उम्र में खुदीराम बोस हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए थे। जिस उम्र में युवा अपनी रंगीन दुनिया में खोए होते हैं। उस उम्र में खुदीराम बोस ने देश के लिए मरना ठीक समझा और बिना किसी डर के एक हाथ में गीता लेकर फांसी के फंदे पर झूल गए। बता दें कि इनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले हबीबपुर गांव में हुआ था। सिर्फ 16 साल की उम्र में ये बंगाल विभाजन के विरोध में कुद पड़े। स्वदेशी आंदोलन के दौरान इन्होंने विदेशी सामान की होली भी जलाई। इसके साथ ही वे गोदाम भी जला दिए गए जहां विदेशा सामान रखा हुआ था। क्रांतिकारियों के लिए क्रूर माने जाने वाले प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस एच किंग्सफोर्ड को कई बार मारने के प्रयास विफल रहे। बाद में ये जिम्मेदारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी को दी गई। योजनानुसार 30 अप्रैल 1908 को किंग्सफोर्ड की घोड़ा गाड़ी पर बम से हमला किया गया। लेकिन किंग्सफोर्ड गाड़ी में नहीं थे। इस घटना में बैरिस्टर प्रिंगल कैनेडी की पत्नी और बेटी मारे गए। घटना के बाद चाकी ने गिरफ्तार होने से पहले खुद को गोली मार ली और खुदी राम को गिरफ्तार कर लिया गया।