जिले के 334 लोग आंदोलनों में प्रमुख रूप से रहे सक्रिय, इनमें 164 शहरी व 170 ग्रामीण थे
रवि प्रताप सिंह। अम्बाला
आजादी की लड़ाई में ग्रामीणों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन इन्हें इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला जिसके वो अधिकारी थे। इसी कड़ी में बब्याल और बीहटा गांव के लोगों ने सभी राष्ट्रीय आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई। इनके अलावा शदजादपूर, पतरेहड़ी, पंजोखरा साहिब, केसरी और साहा लोगों ने भी आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उल्लेखनीय है कि जिले के 334 लोगों ने आजादी की लड़ाई में प्रमुख रूप से भाग लिया। इसमें 164 शहरी थे वहीं 170 गांवों से ताल्लुक रखते थे।
सिटी में गांधी जी ने 50 हजार को लोगो किया संबोधित
इतिहासकार यूवी सिंह ने बताया कि बब्याल छावनी के नजदीक होने के चलते यहां राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव जल्द पढ़ता था। जलियांवाला बाग नरसंहार और रोलेट एक्ट जैसे कानूनों के विरोध में महात्मा गांधी ने वर्ष 1920 को असहयोग आंदोलन चलाया। आंदोलन को गति देने के लिए गांधी जी ने मार्च, 1921 में अम्बाला शहर में एक विशाल जन सभा को संबोधित किया। इसमें अम्बाला समेत आस-पास से करीब 50 हजार लोग शामिल हुए। सभा में शामिल होने वाले अधिकतर लोग ग्रामीण थे। इस सभा में बब्याल से रामचंद्र जिंदल, आत्मा राम और ब्रम्हानंद गौतम शामिल हुए। वैसे, अकेले बब्याल से सभी राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख रूप से 12 लोगों ने हिस्सा लिया था। इनमें आत्मा राम, राम चंद्र जिंदल, बैधनाथ जिंदल, दीलीप सिंह, हजारी लाल, मेहर चंद्र परशुराम, रूप चंद्र, साधु राम, केदारनाथ शर्मा, मातु राम और ब्रम्हानंद शामिल हैं। इन्हें कई बार 6 महीने से एक साल तक की जेल भी हुई थी।
राम चंद्र ने आजीवन खादी पहनने का प्रण लिया
गांधी जी के आह्वान पर रामचंद्र ने अन्य सहयोगियों की मदद से नमक कानून तोड़ा। साथ ही विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। 8 अगस्त,1930 को बब्याल के शराब व्यापारी की दुकान के सामने रामचंद्र और आलाराम के नेतृत्व में 400 स्त्री और पुरुष ने प्रदर्शन किया। धरने के सामने झुकते हुए व्यापारी को अपनी दुकान बंद करनी पड़ी। इसके अलावा बब्याल में अछुत्तोदार कमेटी बनाई गई। इसमें आत्माराम व राम चंद्र जिंदल ने मुख्य भूमिका निभाई। राम चंद्र ने आजीवन स्वदेशी मंत्र अपनाते हुए खादी पहनने का प्रण लिया। खादी के प्रचार व प्रसार के लिए खद्दर प्रचार युवक संघ भी बनाया गया। इस तरह बब्याल आजादी की लड़ाई लड़ने का गढ़ बन चुका था। इसी कड़ी में स्वतंत्रता सेनानी राधेश्याम शर्मा और सूरज प्रकाश ने 9 अक्टुबर, 1930 को बब्याल पहुंचकर भूमि कर न देने का आह्वान किया।
निशांत सिनेमा में फौजियों को खुले विद्रोह के लिए बांटे गए पर्चे
महात्मा गांधी के भारत छोड़ों आंदोलन की तपिश अम्बाला में भी देखने को मिली। इसमें गांधी जी के दिए नारे करो या मरो ने लोगों में जोश भर दिया। नारे से उत्साहित स्वतंत्रता सेनानियों ने कैंट के निशांत सिनेमा में फौजियों और सरकारी कर्मचारियों को ‘आजादी का मोर्चा’ नाम से पर्चे बांटे। इसमें जनता से खुले विद्रोह का आह्वान किया गया था। इस मामले में अंग्रेजी सरकार ने कार्रवाई करते हुए खादी भंडार से काली चरण, राम चंद्र जिंदल, हजारी लाल, ब्रम्हानंद और केदार नाथ शर्मा को 6 महीने से लेकर एक साल तक की जेल हुई।
भाना सिंह राजपूत ने बसाया था बब्याल
14वीं से 15वीं शताब्दी में बब्याल को भाना सिंह राजपूत ने बसाया था। इस गांव का संबंध जैसलमेर के भाटी राजपूतों से माना जाता है। उस समय बब्याल का रकबा एक बावनी था यानी 52 हजार बीघा जमीन (10400 एकड़) थी। वर्ष 1843 में अंग्रेजों ने अम्बाला में अपनी छावनी बनाई और गांव के रकबे को 99 साल की लीज पर एक पाई या एक आना प्रति एकड लिया था।
राष्ट्रवादिओं का सम्मान करने पर डीसी ने बीहटा पंचायत की बर्खास्त
15वीं शताब्दी में बसे बीहटा गांव भी एक बावनी था। आजादी की लडाई में यहां के लोगों ने भी खूब बढ़-चढ़ कर भाग लिया। नमक सत्याग्रह आंदोलन को बल देने के लिए गांव-गांव में राष्ट्रवादियों के जत्थे घूम-घूम कर जन जागरण में शामिल होने के लिए लोगों को जागरूक कर रहे थे। उसी दौरान एक जत्था जन जागरण के बाद रात को बीहटा चौपाल पहुंचा तो उनका बहुत सम्मान किया गया। खाना खिलाने के बाद गांव में ही रात को उनके विचार व भाषण सुने गए। इस पर कार्रवाई करते हुए तत्कालीन डीसी ने पंचायत को बर्खास्त कर दिया। इसमें सरपंच मंगल सिंह व पंचायत के अन्य सदस्य करतार सिंह, बड़मन सिंह, गूजर सिंह और कपूर सिंह शामिल हैं। यहीं जत्था ट्रेन लेने के लिए बराडा पहुंचा तो स्टेशन मास्टर व अन्य कर्मचारियो ने उनका स्वागत किया। इससे खफा अंग्रेजी सरकार ने कार्रवाई करते हुए बराड़ा के स्टेशन मास्टर बापू शालिग्राम, असिस्टेंट स्टेशन मास्टर बदरी नाथ और टेलिग्राफ लिपिक शिवकरनदास को बर्खास्त कर दिया।
नमक कानून तोड़ने पर बीहटा के स्वतंत्रता सेनानियों को हुई जेल
नमक कानून तोड़ने पर बीहटा के भोलाराम और ठाकुर रत्नसिंह को 6 महीने की जेल हुई। वहीं जनजागरण में जुटे दूसरे जत्थे में बीहटा के मानसिंह चौहान, फतेह सिंह, गणेशी लाल, कुंदन सिंह, मिठ्ठन लाल को अम्बाला शहर में बंदी बनाया गया। इन्हें 6 महीने की सजा हुई। इसी तरह शमशेर सिंह, शेर सिंह, शिव सिंह, याद राम को भी 3 से लेकर महीने तक की सजा हुई।
ठाकुर रत्न सिंह पिछड़ो में शिक्षा के प्रसार के लिए जुड़े थे अछूतोद्धार कमेटी से
मुलाना के महाराणा प्रताप नेशनल कॉलेज की आधार शिला रखने वाले ठाकुर रत्न सिंह ने भारत छोड़ो आंदोलन में गणेशीलाल, कुंदन सिंह, शेर सिंह और शिव सिंह ने अपनी गिरफ्तारी दी। आंदोलन के अलावा वह पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए अछूत्तोदार कमेटी से भी जुड़े। इसके माध्यम से इन्होंने पिछड़े वर्ग से आग्रह किया कि पिछड़ापन दूर करने के लिए शिक्षा को सहारा बनाओं।