वो पूछती है क्या सच में जुदा होंगे हम

कविताएँ

वो पूछती है क्या सच में जुदा होंगे हम,
मैंने कहा वक्त का सितम वक्त पर छोड़ दे,
थोड़ा पास बैठ थोड़ा पहलु में रोन दे,

समझ है उसे, की ये हो नहीं सकता,
ख्वाब का जीवन है, जीना चाहती है वो,
पूरी जिन्दगी न सही, कुछ पल चाहती है वो,

रो बैठती है कभी-कभी,जब हौंसला टूटता है,
मुझको पास रख जब सबकुछ उसका छूटता है,

आंख की लाली रात की कहानी बयां करती है,
कितना रोई होगी मेरे जाने के बाद,

अब हंसी में दर्द दिखता है उसकी ,
मैं चाहता क्या हूं कर क्या रहा हूं मैं,

पत्थर कहती है मुझे,कभी लिपट जाती है,
इतना चाहती है मुझको,के बस सिसक जाती है,

अधुरे ख्याल से मैं कुछ भी पूरा नहीं करता,
मैं क्या चाहता हूं और मैं क्या नहीं करता,
खुला कुछ नहीं सब बंधा सा लगता है,
जो जितना करीब था अब जुदा सा लगता है,

सोच ने सोचने को मजबूर किया,
वह क्या चाहती थी, क्या मैंने दिया,


भूलती नहीं है भुलाने से भी,
हर अक्षर में मेरा नाम ढूंढना उसका,
मुझे भी आ गया।।


Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।


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