गजब का माहौल हो गया,
कहीं किसान मरा,
कहीं राजनीतिक गोल हो गया,
परिवार की फिक्र किसे,
वोटो का ये धंधा है,
आँखे तो सबकी है,
इंसान अब अंधा है,
गरीब के हिस्से भूख आई,
अमीर के हिस्से रोटी,
जिसको जितनी चाहिए
उसकी ही किस्मत खोटी,
सत्ता और विपक्ष में,
मचा घमासान है,
होना-वोना कुछ नहीं
दो दिन का ये नामोनिशान है,
लाशों पर गिद्ध नहीं
अब नेता मंडराते हैं,
अपने यहां कुछ नहीं होता,
दूसरे को गलियाते हैं,
काश के संसद उड़ जाती
नेताओं की नई पौध आती
अब पुराने पेड़ो के कीड़े,
पौधों मे आ गए,
सिर्फ चेहरे बदले है साहब,
नेता वहीं पुराने आ गए।।