मैं भीड़ में खो नहीं सकता,
मैं हर किसी का हो नहीं सकता,
हाथ थाम लूं किसी का भी,
ये आदत नहीं है मेरी,
और जिसका पकड़ु,वो जुदा हो,
ये हो नहीं सकता।।
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।