न खुद को अकेला समझ, न ढूंढ ठिकाना रोने का,
ये वक्त मिला है तुझ को, कुछ बनने का कुछ होने का,
ठुकरा दे आशाएं सबकी, कुछ कहने की कुछ समझाने की,
ये आग दिल में जगाए ऱख, कुछ बनने की कुछ होने की,
रख हौसला खुद पर, न घबरा विपत्तियों के वार से
जीती उन्होनें दुनिया जो नहीं डरते हार से,
बदले लकीरें हाथो की, जो चलें तेरे विरूद्ध,
तोड़ दे निराशाओ की बंदिशे, कामयाबी मिलेगी खुद व खुद
न खुद को अकेला समझ, न ढूंढ ठिकाना रोने का,
ये वक्त मिला है तुझ को, कुछ बनने का कुछ होने का,
तु न रुक, तु न ड़गमगा, रख होसला खुद पर,
हवा से तेज हो जा,
उखाड़ दे बाधाओ के हर पेड़ को, जो रूकावट बनें तेरे मार्ग की,
ये आग दिल में जलाए रख कुछ बनने की कुछ होने की,
तु न खुद को अकेला समझ, न ढूंढ ठिकाना रोने का,
ये वक्त मिला है तुझ को, कुछ बनने का कुछ होने का।।
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।