देशद्रोही नारे जिन्हे नई विचार धारा लगती है

मेरी बात

विचार डेस्कः जेएनयु विवाद 9 फरवरी से शुरू हुआ और अब तक जारी है। क्या यह विषय सही मायनो में इतना लम्बा चलना चाहिए था? आपको 9 फरवरी को लगाए वो नारे याद होगे। भारत को तोड़ने वाले, भारत की बर्बादी की दुआ मागने वाले, कौन लोग थे ? कौन अफजल को शहीद बता रहे थे ? वो लोग कौन थे जो “अफजल हम शर्मिदा है, तेरे कातिल जिन्दा है” जैसे नारे लगा रहे थे ? वो कौन लोग थे जो उन नारो के समर्थन में नारे लगा रहे थे ? कौन है उमर खालिद, कह्नैया कुमार, अनिर्बान भट्टाचार्य, आदि आदि। ओह माफ़ कीजिएगा एक ओर महत्वपूर्ण नाम मै लेना भूल गया अपराजिता। अब आप पूछेगे ये अपराजीता कौन है ? आपको बता देता हूँ अपराजीता जी है सीपीआई के नेता डी. राजा की बेटी। वह भी तब से पुलिस से बचती फिर रही थी। अब आप समझ ही गए होगे ये मामला लम्बा क्यों चला और इतना हो हल्ला क्यों मचा।  

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्याल जब स्थापित जब हुआ।  उसके बाद से ही उसमे अध्यापको की नियुक्ति का कार्य ये वामपंथियो की विचारधारा से प्रभावित कमिटी ही करती है।  अब ये चुनती भी अपनी विचार धारा के लोगो को है। लेकिन जब से नई सरकार आई है तब से जे एन यु के टीचर एसोसिएशन में कुछ हलचल नज़र आ रही है। अगर अब उनके विचारधारा के लोग नहीं चुने जाते तो इसका भगवाकरण हो रहा है। खैर ये आरोप तो लगते रहगे लेकिन कभी साबित नहीं होते।  
 
2000  में जे एन यु में भारत और पाक्सितान के बीच में एक मुशायरा हुआ था। उसमे एक शायर फातिमा रियाज़ ने भारत का मज़ाक उड़ाया। वहां पर बैठे दो सेना के जवान ने जब इस बात का विरोध किया तो वहां बैठे जे एन  यु  के तथाकथित विद्यार्थियों ने उनकी पिटाई कर दी।  उनको इस कदर मारा के उनको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।
  ये कैसी राष्ट्रभक्ति है कि कोई दूसरे देश का नागरिक हमारे देश का मज़ाक बनाए और हम हँसे। जब कोई भारतीय इसका विरोध करे तो उसकी पिटाई करदो। यंहा आपको बता दूँ।  ये सेना के वीर जवान 1999 का कारगिल युद्ध भी लड़ चुके थे ओर जब ये बात उन्होंने उन्हें बताई तो भी उन्होंने सैनिको को मारा।   
 
ये कैसी अभिव्यक्ति कि आज़ादी है जहाँ अपने देश के बारे में बुरा बोलना, देश के अहित की कामना करना एक फैशन बन गया है। जहाँ तर्कों की जगह कुतर्को का सहारा लिया जाता है जैसे “अगर मैं वन्दे मातरम ना बोलू तो मैं क्या देश भक्त नहीं हूँ” । ये बात बिलकुल सही है कि वन्दे मातरम बोलने से कोई देश भक्त नहीं हो जाता परन्तु अगर आप तर्क तो बहुत करोगे लेकिन वन्दे मातरम नहीं बोलेगे तो शक तो होगा ही क्योकि जिसे अपने देश के लिए तोड़ा भी मान सम्मान होगा वो तर्क कुतर्क में नहीं पड़ेगा वो सीधे बोल देगा वन्दे मातरम।  यह बात भी सत्य है। 
 
यंहा मैं एक बात पूछना चाहता हूँ। देशद्रोही नारे जिन्हे नई विचारदारा लगती है। जिस देश में रहते है उसे गाली देना क्या आज़ादी है ? ये लोग बौद्धिक  रूप से दिवालिये हो चुके है। 
 
हो सकता है कुछ लोग इस बात से सहमत ना हो परन्तु जब पाकिस्तान ने ये देखा कि हिन्दुस्तान पर सीधे हमले से जीता नहीं जा सकता तो उसने आतंकवाद का सहारा लिया। लेकिन जैसे हमारे यंहा के बुद्धिजीवी जिस तरह से भारत के विरोधियो के साथ जा कर खड़े हो जाते है। उसे देखते हुए भारत में फैले बौद्धिक आतंकवाद के लिए भी अपनी नीति बनानी होगी। 
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