सबने तारीफ की जुल्फों की, मेरी कलम मां की झुर्री तक सिमटी रही,
मैं ठिकाना बना सबका, सबकी नज़र मंजिल पर टिकी रही,
टकराया मैं हर तूफान से, तेरी सलामती के लिए,
मेरी नींव क्या हिली तेरी सीरत बदलती रही,
मैं बदलता नहीं यही खासियत है मेरी,
कच्ची ज़मीन में किसी इमारत की नींव डलती नहीं,
तू रहा हमेशा अपनी पहचान की तलाश में,
और मेरी लौ तेरी पहचान के लिए जलती रही,
मैं खुश हूं के जान गया सब फरेब दुनिया के,
मेरी पीठ अब कभी मेरे दोस्तों को दिखती नहीं,
राह पर चलते-चलते दोस्ती से वाकिफ़ हुआ हूं मैंं,
अब मंजिल से मेरी नज़र हटती नहीं।।
मैं ठिकाना बना सबका, सबकी नज़र मंजिल पर टिकी रही,
टकराया मैं हर तूफान से, तेरी सलामती के लिए,
मेरी नींव क्या हिली तेरी सीरत बदलती रही,
मैं बदलता नहीं यही खासियत है मेरी,
कच्ची ज़मीन में किसी इमारत की नींव डलती नहीं,
तू रहा हमेशा अपनी पहचान की तलाश में,
और मेरी लौ तेरी पहचान के लिए जलती रही,
मैं खुश हूं के जान गया सब फरेब दुनिया के,
मेरी पीठ अब कभी मेरे दोस्तों को दिखती नहीं,
राह पर चलते-चलते दोस्ती से वाकिफ़ हुआ हूं मैंं,
अब मंजिल से मेरी नज़र हटती नहीं।।
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।