विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र शर्मसार, लेकिन गलती किसकी?

नजरिया

एडिटोरियल डेस्कः इस बार का गणतंत्र दिवस इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गया है। राष्ट्रीय पर्व के दिन किसानों के भेष में शामिल कुछ अराजक तत्वों ने ट्रैक्टर रैली को लेकर पैदा हुई सुरक्षा बलों की शंकाओं को सही साबित कर दिया। ट्रैक्टर रैली निकालने पर अड़े किसान संगठनों ने दिल्ली पुलिस को लिखित आश्वासन दिया था कि रैली शांतिपूर्ण रहेगी। लेकिन किसान संगठनों ने तय किए गए रुट को छोड़कर मन मुताबिक रुट पर जाना शुरू कर दिया। कई जगहों पर बैरिकेडिंग तोड़ी गई।

हद तो तब हो गई जब किसान सारी सीमाओं को तोड़ते हुए लाल किले पर पहुंच गए और लाल किले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा फैरा दिया गया। वहीं, एक तिरंगे का अपमान करने वाला एक वीडियो भी सामने आया है। इसमें प्रदर्शनकारी ने पोल पर चढ़ते हुए दूसरे प्रदर्शनकारी से तिरंगा लेकर फेंक दिया।वहीं कुछ प्रदर्शनकारी पुलिस पर लाठी, डंडे और तलवारे चलाते दिखाई दिए तो कुछ ने ट्रेक्टर चढ़ाने की कोशिश की।
हालांकि यहां दिल्ली पुलिस के संयम की सरहाना की जानी चाहिए। दिल्ली पुलिस ने धर्य दिखाते हुए कोई ऐसी कार्रवाई नहीं की जिससे जान हानि की संभावनाएं बढ़े।देश को शर्मसार करने वाली इस घटना के बाद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो चुका है। किसान नेता टिकैत ने बयान दिया है कि इस घटना के लिए दिल्ली पुलिस ही जिम्मेदार है। वहींं, तथाकथित किसान नेता योगेंद्र यादव ने इसमें कुछ बाहरी लोगों के शामिल होने की बात कही है।

धार्मिक झंडा फहराने का आरोप पंजाबी एक्टर दीप सिंद्धू पर लगा है। नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) ने दीप सिद्धू को सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) मामले की जांच के सिलसिले में पिछले हफ्ते पेश होने के लिए समन भेजा था। इस संबंध में गत वर्ष 15 दिसंबर को केस दर्ज किया गया था। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने उस वक्त इन समन का विरोध किया था। आज वह खुद को दीप सिद्धू से खुद को अलग होने की बात कर रही है।

कांग्रेस के लुधियाना से सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने भी दावा किया कि वो दीप सिद्धू ही है जिसने लाल किले पर झंडा फहराया था। वह प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस का सदस्य है। वहीं, पाकिस्तान ने इस घटना को ऐतिहासिक करार दिया है। स्वराज पार्टी के मुखिया योगेंद्र यादव ने इसके पीछे बीजेपी की साजिश बताया है। बीजेपी पर आरोप लगा कर योगेंद्र यादव अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। क्योंकि सुरक्षा बलों ने पहले ही चेताया था कि ट्रैक्टर रैली का फायदा अराजक तत्व उठा सकते हैं। लेकिन उस समय किसान यूनियनों ने कहा था कि हम एक-एक बंदे को चैक कर ट्रैक्टर पर बैठाएंगे। अब यह घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह शर्मनाक घटना है। भारत को बदनाम करने की साजिश रचने वालों के मंसुबे सफल हो गए हैं। लेकिन सवाल उठता है कि इसमें गलती किस की रही। सरकार की या फिर किसान संगठनों की, जवाब आप खुद तय करें।

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