आंदोलन को धार देने के लिए अम्बेड़कर की तस्वीर लगाएंगे, पर उनका कहा नहीं बताएंगे

नजरिया
किसान आंदोलन

ए़डिटोरियल डेस्कः किसान आंदोलन को 85 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं। लेकिन जो समर्थन आंदोलन को 26 जनवरी की घटना से पहले मिल रहा था, वह अब नहीं रहा। दिल्ली बॉर्डर पर खाली पड़े टैंट व तंबू इसकी गवाही ही दे रहे हैं। हालांकि किसान नेता भीड़ बढ़ाने के लिए नित नई रणनीति बना रहे हैं। इसी नीति के तहत भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत दिल्ली के गाजीपुर बार्डर पर किसानों को टैंटों में एसी और कूलर का प्रलोभन दे रहे हैं तो कही जातिगत गणित साधने की कोशिश की जा रही है। हालांकि राकेश टिकैत की अपील के बाद दिल्ली बॉर्डर पर किसानों की संख्या बढ़ेगी या घटेगी ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन ये बात अब साफ हो चुकी है कि किसान नेताओं को भीड़ जुटाने में मशक्कत करनी पड़ रही है।

बॉर्डर पर लोगों की घटती संख्या ने किसान नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। इसी का नतीजा है कि किसान संगठन भी नेताओं की तरह जातिगत गणित साधने में जुट गए हैं। हालांकि अभी तक ऐसा चुनाव के वक्त हमने राजनीतिक नेताओं को करते हुए देखा है। लेकिन अब किसान नेता भी कमजोर पड़ते आंदोलन को नई धार देने के लिए इसी नीति पर काम कर रहे हैं।

ज्ञात हो शनिवार को हरियाणा के हिसार जिले के बरवाला कस्बा में किसानों की दलित समुदाय के साथ महापंचायत हुई। इसमें आंदोलन को मजबूत करने के लिए जाट और जाटव समुदाए को एक करने की बात हुई। बैठक में किसान आंदोलन को समर्थन करने की लोगों से अपील की गई। बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। प्रस्ताव के मुताबिक सभी किसान अपने घर में डॉ. बाबा साहेब का फोटो लगाएंगे। वहीं, दलित वर्ग के लोग जाटों के आइकन सर छोटु राम की तस्वीरें लगाएंगे। यह कदम जाटों और दलितों की एकता को मजबूत करने के लिए उठाया गया है, ताकि किसान आंदोलन में इस एकता का लाभ उठाया जा सके। बैठक में मौजूद किसान नेता गुरुनाम चढ़ूनी ने कहा कि हमारी लड़ाई सिर्फ सरकार के खिलाफ ही नहीं है बल्कि पूंजीवाद के भी खिलाफ है। सरकार हमें बांटने की साजिश रच रही है। साथ ही उन्होंने आंदोलन को देश भर में पहुंचाने की भी मांग की। बता दें कि हरियाणा में करीब 20 प्रतिशत दलित हैं।

लेकिन यहां सवाल उठता है कि जिन बाबा साहेब की तस्वीर घरों में लगाने की बात किसान संगठन कर रहे हैं। खुद उनका आंदोलन के बारे में क्या विचार था। 25 नवंबर, 1949 को बाबा साहेब ने संविधान सभा में कहा था, कि हमें संवैधानिक तरीके से सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहिए। इसका अर्थ है कि हमें सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह के मार्ग को छोड़ देना चाहिए। लेकिन जब संवैधानिक तरीके से सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ती संभव न हो तो उस स्थिति में असंवैधानिक तरीके को अपनाने का कुछ औचित्य हो सकता है। पर जहां सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को पाने के संविधानिक रास्ते खुले हैं वहां असंवैधानिक मार्ग को चुनने का कोई औचित्य नहीं है। ये तरीका पूरी तरह से अराजकता फैलाने का एक व्याकरण हैं। इसे जितना जल्दी त्याग दें हमारे लिए यह उतना ही सही है।

गत कुछ वर्षों में एक चलन चल पड़ा है कि आंदोलनकारी डॉ. भीम राव अम्बेड़कर की तस्वीर लेकर सड़कों पर निकल पड़ते हैं। लेकिन जिस की तस्वीर थामें लोकतंत्र की दुआई देते हैं। असल में उन्होंने क्या कहा है. इस पर विचार नहीं करते। दरअसल हमारे देश में एक रिवाज चल पड़ा है कि महापुरुषों को मानते हैं। लेकिन महापुरुषों की नहीं मानते।

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