
नैशनल डैस्क: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा कि परिसीमन के बाद भी दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटों में कोई कटौती नहीं होगी। यह बयान तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों की उन चिंताओं के बीच आया है, जिनका मानना है कि नवीनतम जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर परिसीमन होने पर उनकी संसदीय सीटें कम हो सकती हैं।
परिसीमन क्यों आवश्यक?
परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो प्रत्येक जनगणना के बाद की जाती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक संसदीय क्षेत्र की जनसंख्या लगभग समान हो। 1951, 1961 और 1971 की जनगणनाओं के आधार पर संसदीय और विधानसभा सीटों का पुनर्वितरण किया गया था। लेकिन 42वें संविधान संशोधन (1976) के तहत आपातकाल के दौरान सीटों की संख्या 2001 तक स्थगित कर दी गई थी।

दक्षिणी राज्यों की चिंता क्यों?
दक्षिणी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की दर उत्तर भारत की तुलना में धीमी रही है। यदि परिसीमन नवीनतम जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर होता है, तो उत्तर भारतीय राज्यों की संसदीय सीटों में भारी वृद्धि होगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने भी इसे लेकर चिंता जताई थी कि परिसीमन के कारण दक्षिण भारतीय राज्यों की आवाज कमजोर पड़ सकती है।
क्या कहता है डेटा?
1977 में प्रत्येक लोकसभा सांसद औसतन 10.11 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता था। यदि यह औसत कायम रखा जाए, तो लोकसभा की सीटें 1,400 तक बढ़ सकती हैं। इस स्थिति में उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड सहित) की सीटें 85 से बढ़कर 250 और बिहार (झारखंड सहित) की सीटें 25 से बढ़कर 82 हो जाएंगी। वहीं, तमिलनाडु की सीटें केवल 39 से बढ़कर 76 और केरल की 20 से बढ़कर 36 होंगी।
नई संसद भवन में केवल 888 सीटें होने के कारण यह फार्मूला संभव नहीं है। यदि प्रति संसदीय क्षेत्र की जनसंख्या 20 लाख रखी जाए, तो लोकसभा में 707 सीटें होंगी। इस स्थिति में तमिलनाडु की सीटें जस की तस रहेंगी, जबकि केरल की दो सीटें कम हो जाएंगी। उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड सहित) की सीटें 126 और बिहार (झारखंड सहित) की 85 हो जाएंगी।

राजनीतिक प्रभाव
क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस को डर है कि परिसीमन से उत्तर भारत की सीटें बढ़ने के कारण भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लाभ मिलेगा। कांग्रेस का प्रदर्शन उत्तर भारत में कमजोर रहा है, जबकि दक्षिण भारत में उसने बेहतर प्रदर्शन किया है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस को केरल से 15 और तमिलनाडु से 8 सीटें मिली थीं।

परिसीमन से भाजपा जैसी उत्तर भारतीय राज्यों में मजबूत पकड़ रखने वाली पार्टी को लाभ मिल सकता है, जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों की राजनीतिक शक्ति कम हो सकती है। इस मुद्दे को लेकर आने वाले वर्षों में राजनीति गरमा सकती है।
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