
इतिहास डेस्क: देश की राजनीति में मुगल शासक औरंगजेब एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के उनके महिमामंडन की कोशिश को लेकर विवाद गहरा गया है। इतिहास के पन्नों में देखें तो औरंगजेब का नाम सबसे विवादास्पद मुगल शासकों में आता है।
औरंगजेब ने अपने शासनकाल में गैर-मुसलमानों पर जजिया कर जैसी भेदभावपूर्ण नीतियां लागू की थीं। उनके आदेश पर सिखों के गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया गया था। उन्होंने गुरु गोविंद सिंह के बेटों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया और मराठा योद्धा संभाजी महाराज की आंखें फोड़ दीं एवं नाखून उखाड़ लिए। उनके शासन में भारत में शरियत के आधार पर फतवा-ए-आलमगीरी लागू किया गया और कई हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया, जिसमें काशी और सोमनाथ के मंदिर प्रमुख थे।
औरंगजेब के शासनकाल के प्रमुख युद्ध:
- सम्राट बनने की लड़ाई (1657-1659): औरंगजेब ने अपने भाइयों दारा शिकोह, शुजा और मुराद बख्श के खिलाफ युद्ध लड़ा। 1658 में सामुगढ़ के युद्ध में दारा शिकोह को हराकर औरंगजेब ने मुगल ताज हासिल किया।
- आगरा की घेराबंदी (1658): अपने पिता शाहजहां को अपदस्थ करने के लिए औरंगजेब ने आगरा किले को घेर लिया और शाहजहां को बंदी बना लिया।
- मुगल-मराठा संघर्ष (1667-1707): छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ कई युद्ध हुए। 1665 में पुरंदर की संधि के बावजूद संघर्ष जारी रहा। 1681 में संभाजी महाराज औरंगजेब के खिलाफ लड़े, लेकिन 1689 में उन्हें पकड़कर निर्ममता से मार दिया गया।
- राजपूत विद्रोह (1679-1681): जब औरंगजेब ने मारवाड़ के राठौड़ वंश के उत्तराधिकार विवाद में हस्तक्षेप किया, तो वहां विद्रोह भड़क उठा, जिसे राजपूतों ने लंबे समय तक जारी रखा।
- बीजापुर और गोलकुंडा पर विजय (1686-1687): दक्षिण भारत में बीजापुर (1686) और गोलकुंडा (1687) को जीतकर औरंगजेब ने दक्कन में अपना प्रभाव बढ़ाया।
- सिखों के खिलाफ अभियान (1675-1705): गुरु तेग बहादुर को 1675 में औरंगजेब ने दिल्ली में मौत के घाट उतार दिया। बाद में गुरु गोबिंद सिंह और उनके खालसा पंथ के खिलाफ मुगलों की कई लड़ाइयां हुईं।
- जिनजी की घेराबंदी (1690-1698): छत्रपति राजाराम ने मराठा प्रतिरोध जारी रखा, और 1698 में ही मुगलों ने जिनजी को कब्जे में लिया।
- मुगल-सिख संघर्ष (1705-1707): आनंदपुर साहिब पर 1705 में आक्रमण हुआ, और गुरु गोबिंद सिंह के बेटों को निर्दयता से दीवार में चुनवा दिया गया।
इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब की क्रूर नीतियों के चलते मुगल साम्राज्य अपने सबसे बड़े विस्तार पर पहुंचा। हालांकि, उनकी मृत्यु 1707 ईस्वी में हुई और कहा जाता है कि अंत समय में उन्हें अपने कृत्यों का पछतावा था। उन्होंने अपने बेटों आजम शाह और काम बख्श को पत्र लिखकर अपने गुनाहों को स्वीकार किया था।
राम कुमार वर्मा की पुस्तक ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ के अनुसार, उनके आखिरी पत्र में उन्होंने लिखा था – “अब मैं बूढ़ा और दुर्बल हो गया हूं। मैं नहीं जानता मैं कौन हूं और इस संसार में क्यों आया। मैंने लोगों का भला नहीं किया, मेरा जीवन ऐसे ही निरर्थक बीत गया। दुनिया में कुछ लेकर नहीं आया था, लेकिन अब पापों का भारी बोझ लेकर जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि अल्लाह मुझे क्या सजा देगा, मैंने लोगों को जितने भी दुख दिए हैं, उन सभी का परिणाम मुझे भुगतना होगा।”
इतिहास के अनुसार, औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद कर दिया था और उन्हें पानी के लिए भी तरसा दिया था। शाहजहां ने अपनी आत्मकथा ‘शाहजहांनामा’ में औरंगजेब के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग किया था। उन्होंने लिखा था कि “खुदा करे कि ऐसी औलाद किसी के यहाँ पैदा ना हो।”
औरंगजेब अपने साम्राज्य को अपने पुत्रों में विभाजित करना चाहता था, लेकिन उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटों के बीच उत्तराधिकार का भीषण युद्ध हुआ। अंततः शाहजादा मुअज्जम विजयी हुआ और उसने अपने भाइयों मुहम्मद आजम और काम बख्श को पराजित कर मार डाला।
1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसे महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास खुल्दाबाद में एक साधारण मकबरे में दफनाया गया। उनकी कब्र कच्ची मिट्टी की बनी हुई है, जिस पर कोई स्थायी छत नहीं है। इतिहासकार इसे उनके प्रायश्चित का प्रतीक मानते हैं।
आज औरंगजेब का नाम भारतीय राजनीति में एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है। उनके शासनकाल के ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर विभिन्न विचारधाराओं के बीच विवाद जारी है। अबू आजमी के बयान के बाद यह बहस और तेज हो गई है कि क्या इतिहास को नए नजरिए से देखने की जरूरत है या फिर तथ्य वही हैं जो सदियों से दर्ज हैं।