केजरीवाल एक रंग अनेक

मेरी बात
 
विचार डेस्कः केजरीवाल ने अपना राजनैतिक जीवन शुरू किया 2 अक्टूबर 2012 से। यह वह समय था जब लोग कांग्रेस के शासन से तंग हो चुके थे और अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस डूबती नाव को पीछे छोड़ अपने आपको एक नए विकल्प के तौर पर प्रदर्शित कर रहे थे। आम आदमी पार्टी की शुरुआत से पहले उन्होंने अन्ना जी के साथ मिलकर इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन चलाया जो काफी हद तक सफल रहा। यंहा सफल होने को, दो सन्दर्भ में देख सकते है आंदोलन ऒर अरविन्द केजरीवाल। ये तो मै कह नहीं सकता की आंदोलन अपने मूल उदेश्य में कितना सफल हो पाया परन्तु केजरीवाल दिल्ली के मुक्यमंत्री बनने में जरूर सफल रहे। 
 
हमेशा आम आदमी की बात करने केजरीवाल जी ने वह सब किया जो कई बार आम आदमी भी नहीं करता। दिल्ली का चुनाव लड़ते हुए। उन्होंने अपने बच्चो की कसम खाई कि वह किसी भी पार्टी का समर्थन नहीं लेंगे परन्तु उन्होंने कांग्रेस पार्टी का समर्थन ले लिया। कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसने वाले और शीला दीक्षित के भ्रस्टाचार के सबूत हमेशा अपने साथ ले कर चलने वाले केजरीवाल जी, सत्ता में आते ही सबकुछ भूल गए। जो आम इंसान चाहे वह कितना ही गरीब क्यों न हो ? जब अपने बच्चे की कसम खाता है तो उसे पूरी जरूर करता है या कोशिश करता है लेकिन सत्ता की कुर्शी दिखते ही वह अपने आदर्श और उसूल भूल गए । 
 
अरविन्द केजरीवाल जी नवम्बर 2013 को बरेली के मौलाना तौकीर रजा खान से मिलते है कि वह उन्हें समर्थन दे दिल्ली में और आप पार्टी की रैली को संबोदित करे। क्योकि दिसम्बर 2013 में दिल्ली के चुनाव होने थे।  आपको बता दे ये मौलाना तौकीर रजा खान वही है जिहोने 2007 में बांग्लादेश की लेखिका तालीम नसरीन  सिर कलम पर इनाम रखा थायह उनका मुस्लिम कार्ड था। 
 
उसके बाद वह कहते है कि वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ा वो भी किसके खिलाफ मोदी जी के। वह चुनाव सोनिया गांधी के खिलाफ नहीं लड़ते जिन्होंने 10 साल अभी शासन किया है और आजादी के बाद से ही यह पार्टी सबसे ज्यादा सत्ता में रही है।   
 
हैदराबाद में एक छात्र आत्महत्या कर लेता है उस पर राजनीती करने हैदराबाद चले जाते है। यह इनका दलित कार्ड था। हालांकि इससे पहले भी कांग्रेस के शासन के दौरान 7 दलित छात्र आत्महत्या करते है।  तब नहीं पहुँचते। जबकि अपने राज्य दिल्ली में 19 जनवरी से 21 जनवरी  तक 8 या 10 लोग सर्दी से मर जाते है उनके पास नहीं जाते ताकि और लोग सर्दी से न मरे, उसकी व्यवस्था नहीं करते परन्तु हैदराबाद चले जाते है। अरविन्द केजरीवाल ने राजनीती की शुरुआत ही भ्रटाचार के खिलाफ की थी। भ्रस्टाचार के लिए किसी से भी समझौता नहीं करने का वादा किया था लेकिन बिहार चुनाव के दौरान आरजेडी और जदयू को पूरा समर्थन दिया। जाकर लालू प्रसाद यादव से गले मिले एक मंच पर बैठे और उनके गठ्बंदन को समर्थन किया जबकि लालू प्रसाद यादव जी चारा घोटाले में सजा काट रहे है और पे रोल पर बहार आये थे।  ये इनकी भ्रटाचार के खिलाफ लड़ाई की सचाई थी। 

 
कैसे यह अवसरवादी और प्रतिशोध की  राजनीती करते है इसके कई उदाहरण है। पुर्निआ में मुसलमानो द्वारा  हिंसा हुई – ये चुप। मालदा में  मुसलमानो द्वारा हिंसा हुई – ये चुप। पश्चमी बंगाल में दुर्गा पूजा पर रोक है उस पर चुप है। राष्ट्रीय गान पर एक अध्यापक को पीटा जाता है पश्चमी बंगाल में ये चुप। अभी केरल में एक आरएसएस के कार्यकर्ता को उसके माता-पिता के सामने बेरहमी से मार जाता है – ये चुप। और जिन पार्टियो के लोगो ने मारा उनके साथ मंच पर बैठते है। 
 
बाटला हाउस केस में केजरीवाल शहीद हुए, पुलिस ऑफिसर मोहन लाल चाँद शर्मा पर शोक नहीं करते। आतंकवादी जो उसमे मारे गए, उनके समर्थन में ओपन लेटर देश के नाम लिखते है और वह इशरत जहां के एनकाउंटर पर भी सवाल खड़े करते है। क्या अब यह देश से माफ़ी मांगेगे ? जब यह साबित हो चूका है कि वह सब आतंकवादी थे। 
 
अभी हाल ही में हनुमत जी शहीद हुए। पम्पौर में हमारे देश के 5 सैनिक आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए शहीद हुए। उनके घर यह नहीं जाते है क्योकि वह वोट बैंक नहीं है।  अभी दिल्ली में देशद्रोह के जो नारे लगे उसके खिलाफ देश के पूर्व सैनिको ने एक रैली निकाली “मार्च फॉर यूनिटी” ये वहां भी नहीं जाते। 
ये जाते कहा है ये देखिये- अरविन्द केजरीवाल और राहुल गांधी पहुँचते  है वामपंथियो की छात्र विंग अइसा के कार्यक्रम में। जो आरोपी छात्रों की गिरफतारी का विरोध कर रहे है। अगर कल यह देश द्रोह का आरोप साबित हो जाता है क्या ये देश से माफ़ी मांगेगे, नहीं क्योकि इन्होने इशरत और बाटला हाउस पर भी नहीं मांगी माफ़ी। 
 
अरविन्द केजरीवाल एक साफ़ सुथरी राजनीती के लिए राजनीती में आये थे लेकिन इन्होने राजनीती के स्तर को ओर निचे गिरा दिया। आम आदमी की बात करने वाले अरविन्द जी ने अपने एमएलए की सैलरी 400% बढ़ जाए एक प्रस्ताव भी पारित कर दिया है अब एक  एमएलए के सैलरी देश के प्रधानमंत्री से भी ज्यादा हो जाएगी। गाडी, बंगला, सुरक्षा को मना करने वाले अब वह सब कुछ कर रहे है जो आम आदमी सोच ही नहीं सकता। राजनीती को बदलने में खुद कितना बदल गए केजरीवाल। 
support सहयोग करें

प्रजातंत्र एक राष्ट्रवादी न्यूज पोर्टल है। वामपंथी और देश विरोधी मीडिया के पास फंड की कोई कमी नहीं है। इन ताकतों से लड़ने के लिए अपनी क्षमता अनुसार हमारा सहयोग करें।

Tagged

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *