कुछ तो सचाई है मेरी बातो में,
के कुछ लोग कहते है मै इंसा बुरा हूँ,
के कुछ लोग कहते है मै इंसा बुरा हूँ,
जिन्होंने जख्म दिए इस गुलिस्ता को,
वही हर फूल पर आंसू बहाते है,
वही हर फूल पर आंसू बहाते है,
जो जिये दिखावे की जिन्दगी उम्र भर,
वही हमे आइना दिखाते है,
वही हमे आइना दिखाते है,
जिन्हें फर्क नहीं मालूम धर्म और पंथ का,
वही अक्सर चिराग लिए पथ दिखाते है,
वही अक्सर चिराग लिए पथ दिखाते है,
छोड़ दी है इंसानियत हैवानो के हाथ में,
और अक्सर पत्थर लोग इंसानों पर उठाते है,
और अक्सर पत्थर लोग इंसानों पर उठाते है,
बदल ली समाज ने अपनी दिशा,
के जो चोर थे वही रक्षक बन जाते है।।
के जो चोर थे वही रक्षक बन जाते है।।
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।
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