हर साल हमे यह सुनने को मिलता है कि परीक्षा में असफल होने के कारण फलाना विद्यार्थी ने आत्महत्या करली। ऐसे दर्जनों केस हमारे सामने हर वर्ष आते है और हर वर्ष हमारा एक ही जवाब होता है कि पढाई के दबाव में बच्चे सही गलत का निर्णय नहीं कर पाते और आत्महत्या कर लेते है। क्या हमे यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारी शिक्षा प्रणाली क्या है ? और कैसी है ? जो विद्यार्थी को जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सामना करने की क्षमता देने के स्थान पर उनके अविकसित मष्तिक पर अतिरिक्त दबाव बना रही है | यह शिक्षा की अर्थहीनता नहीं है तो क्या है ?