सीमा पर मरता सैनिक, एक परिवार उजड़ गया

कविताएँ
सीमा पर मरता सैनिक, एक परिवार उजड़ गया,  
तुम कहते रहे, कडा जवाब, अब तक तुमने क्या किया,
कहां गई वो बाते, जो अब से पहले होती थी,  
जब चलती थी गोली सीमा पर,  तीखी बोली होती थी,
किसका डर और क्या है ड़र, ये आज हमें तुम बतलाओ,
इकोनॉमी के चक्कर में, तुम स्वाभिमान ना बेच आओ, 
खुली जंग का ऑर्डर दो, तोल-मोल की छोडो बात,
पाकिस्तान चीज ही क्या, उसको बताओ उसकी औकात,
माना की फासले, अभी तय करने रहते है,
तुम एक आवाज लगाओ, हम सबकुछ त्यागे बैठे है,
पर शर्त यही, कि अब की बार कोई कसर न छोड़ी जाए,
हम रहे या न रहे, पर दुश्मन जिंदा न जाए,
याद करो तुम प्रताप को, जो लड़ा अपने स्वाभिमान पे,
लडता-डटता खड़ा रहा, अमर हुआ अपनी आन पे,
हम तो फिर भी बहुत बड़े, वो क्या हमको मारेगा,
एक बार जो चिल्ला दे हम, ऑखो से आंसू झाडे़गा,
शांति के कबुतर बंद करो, उठा ले आओ तुम भी एक बाज
हम देख ही ले या तो वो हैं, या हम हैं आज ।।

Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।
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