क्या चाहता हूं मैं, आसमां या ज़मी,
क्यों मुस्कुराता हूं मैं, क्यों हैं ये हंसी।
जंमी पर आसमां के सपने है मेरे,
जब थकता हूं याद आती हैं ये जंमी।
उलझनों में उलझा रहता हूं,
मंजिल की तलाश में,कभी हार हैं कभी जीत
मैं उदास क्यों हूं, मैं इसकी तलाश में हूं
किस फेर में पड़ा हूं,
क्यों ये आसमां क्यों ये जमीं।
ख्याल रहता है, रब तेरा भी,
क्यों पाऊ आसमां क्यों ये ज़मीं।
क्या साबित करना है मुझको,
क्यों न बनू खुद आसमां ये ज़मीं।।
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