ए़डिटोरियल डेस्कः मतदान करने का हक ही असल में लोकतंत्र है। यह ऐसी व्यवस्था है जिसमें नागरिक स्वेच्छा से दूसरे नागरिक को समाजहित और देशहित में स्वयं पर शासन करने का अधिकार देता है। यह व्यवस्था संविधान के तहत पूर्व निर्धारित नियमों से संचालित होती है। लेकिन यह तभी सफल है जब नागरिक अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए घरों से निकले। वह पांच साल में एक बार अपने मत से नेता के शासन और कुशासन की समीक्षा करता है।
स्वस्थ्य़ लोकतंत्र के लिए नेता से ज्यादा जनता अधिक जिम्मेदार होती है। जनता जैसी होगी उस पर वैसा ही शासन करने वाला नेता होगा। यह स्थिति राजतंत्र से थोड़ी भिन्न है। यथा राजा तथा प्रजा अर्थात राजतंत्र में जैसा राजा होता है उसकी प्रजा भी वैसी ही होती है। प्रजा में राजा के ही गुण और आदर्श झलकते हैं। लेकिन लोकतंत्र में राजतंत्र से उलट स्थिति होती है। यहां जैसी प्रजा (जनता) होगी वैसा ही राजा (नेता) होगा मतलब यथा प्रजा तथा राजा। नेता उतनी ही इमानदारी से शासन करेगा जितनी ईमानदारी से जनता ने वोट किया है। लेकिन देश में कितने लोग कितनी ईमानदारी से वोट करते हैं यह जनता भी जानती है और नेता भी। इसी के चलते नेता जनता की एक जेब से रुपये निकाल कर दूसरी जेब में रुपये डालने का खेल खेलता है। वहीं, जनता भी इस खेल में आकर छोटे फायदे के लिए बड़ा नुकसान कर बैठती है।
नेता को पांच साल तक कोसने वाली जनता निर्णय के दिन (मतदान के दिन) छुट्टी मनाने में या आराम करने में घरों में दुबक जाती हैं। इसमें अधिकतर संख्या उन्हीं तथा-कथित लोगों की है जो ऑफिस की टेबल पर बैठकर, पार्क में दोस्तों के सात गप्पे मारते हुए या फिर नुक्कड़ पर बनी चाय की दुकान पर चुस्कियां लेते हुए कहते हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता। ऐसे नागरिकों के होते सच में देश का कुछ नहीं हो सकता। देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी से भागते इन लोगों के लिए यह तस्वीर शायद कुछ प्रेरणा बन जाए। यह तस्वीर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के सातवें चरण के मतदान के समय हैदराबाद के फिल्मनगर नगर में ली गई थी। यह महिला उन लोगों के गाल पर तमाचे की तरह है जो स्वार्थ की गहरी नींद में सोए रहते हैं। शायद यह तमाचा उन्हें जगा दे। इसलिए आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप वोट कर अपने लोकतांत्रिक कर्तव्य का पालन करें।