नेशनल डेस्कः पंजशीर को छोड़कर तालिबान पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा जमा चुका है। अफगानी अपने देश छोड़ने को मजबूर हैं। हामिद कर्जई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अमेरिकी और ब्रिटिश सैनिकों के कब्जे में हैं। हर दिन यहां से भारत और अमेरिका अपने नागरिको समेत अफगानियों को लेकर उन्हें सुरक्षित स्थान पहुंचा रहा है। एयरपोर्ट के बाहर हथियारबंद तालिबानी जब चाहे गोली चला रहे हैं। लोकतंत्र और मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
तालिबान के नित नए वीडियो सामनेे आ रहे हैं कि कैसे वे निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसा रहे हैं। बुजूर्गों की बेल्ट से पिटाई कर रहे हैं। औरतों को बुर्कों में डाल दिया गया है। बच्चियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। महिला पत्रकारों को दफ्तरों में जाने की इजाजत नहीं है। अगर एक लाइन में कहा जाए तो हैवानियत, बर्बरता और अराजकता का नंगा नाच अफगानिस्तान में हो रहा है। लेकिन इन तस्वीरों के सामने आने के बाद भी भारत समेत दुनिया भर के मुस्लमान तालिबान पर प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं। वहीं, कुछ खुलकर तालिबान का स्वागत कर रहे हैं। भारत में मशहूर शायर मुन्वर राणा , सपा सांसद शफीकुर्रहमान, AIMPLB के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी दोनों हाथ खोलकर तालिबान का समर्थन कर चुके हैं। इनके मूंह से एक शब्द भी तालिबान की बर्बरता के खिलाफ नहीं निकल रहा है। जबकि तालिबान राज में शरिया कानून को भुगत चुके अफगानी तालिबानियों की सच्चाई बता कर थक चुके हैं। सोशल मीडिया पर विशेष वर्ग का एक धड़ा तालिबान के समर्थन में खड़ा है। तालिबान को समर्थन करने की इकलौती बड़ी वजह है इस्लाम। भारत समेत दुनिया के घरों में शांति से बैठे मुस्लिम वर्ग अफगानिस्तान में शरिया लागू होने का स्वागत कर रहे हैं। जबकि उसी शरिया से बचने के लिए हजारों अफगानी अपनी जिंदगी दाव पर लगा कर अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं।
स्वागत करने वाले ये वहीं कट्टर मुस्लिम हैं जो वंदे मातरम, भारत माता की जय और राष्ट्रगान बोलने से परहेज करते हैं। कुछ को इनकी संख्या थोड़ी जरूर लग सकती है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इस बर्बर मानसिकता वालों का विरोध, इनके ही मजहब के अच्छी मानसिकता वाले करते नजर नहीं आ रहे हैं। गलत का विरोध नहीं करना एक तरह से उसे मौन समर्थन देना है। भारत को इस कट्टर मानसिकता को जल्द कुचलने की जरूरत है। क्योंकि इस कट्टरता का स्पष्ट उदाहरण हम कश्मीर, जामिया-मिलिया व अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में वर्षों से देखते आ रहे हैं। तालिबान भी उसी देवबंधी विचारधारा से प्रभावित है जो उत्तर प्रदेश के देवबंद में इस्लामिक शिक्षा का केंद्र है। भारत में जहां भी अलगाववाद होता है वहां ये नारा आम है ”तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह”। अब कुछ लोग दबी जुबान में, कुछ खुलकर, कुछ मौन रहकर तालिबान का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह।