दोस्ती महज अफवाह है साहब

कविताएँ

जो चाहा तुम में मिला नहीं
वरना,मिलने में कसर कोई बची नहीं,
जब छोड़ चुके थे साथ तेरा हम
ऐसी कोई कमी नहीं जो तुम्हें हम में मिली नहीं,

ऐसा भी नहीं की हमने बहुत चाहा तुमसे
                     बस हमारी तबियत तुमसे मिली नहीं,

दोस्तों के आगें तुम मुझे बदनाम करते हो
हमने दिन-को-दिन कहा,ये बात हमारी तुम्हें जमीं नहीं,

मैं सपनों में जिया नहीं करता
हकीकत में तुम मेरी, थी ही नहीं,

मैं आज के इश्क को इश्क नहीं मानता
दो बर्गर ना खिला पाए, वो मेरा साजन नहीं,

अब तो रिश्तों में लेन-देन की बात होती है
अब लोग कहां वो, जो दे दिया सो दे दिया 
पीछे परवाह की नहीं,

दोस्ती महज अफवाह है साहब
बस सीढ़ी का, कोई दुसरा शब्द मिला नहीं,

भले ही लाख सच्चे हो तुम
झूठ की दुनिया में तुम्हारी कोई कीमत नहीं,

मैं अकेले चले जा रहा हूं
मुझे भी किसी और की जरूरत नहीं,

यकीं है मुझे मेरे खुदा पर
औरों की अब मुझे भी फिकर नहीं।।

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