तमाम उम्र गवा दी नाराजगी में

कविताएँ
तमाम उम्र गवा दी नाराजगी में ,
जिनसें नाराज हुए, उन्हें इल्म तक नही ,
बहुत छोटी है जिंदगी इन बातो के लिये 
कुछ तुम चलो, कुछ हम चले,
संवाद न हो तो कोई बात नही 
बैठ पास कुछ  तुम कहो, कुछ हम कहे,
भूल जाओ किस ने क्या कहा 
कुछ हम मिले कुछ तुम मिलो,
किस को क्या मिला, अपने अहंकार से
कुछ तुम झूको , कुछ हम झुके,
कौन कब तक टिका, खुले आकाश में
कुछ सहारा तुम बनो, कुछ हम बने,
लापरवाहिया बहुत हैं इस सफर में 
कुछ परवाह तुम करो, कुछ हम करे 
मुश्किलो  मे साथ छोडना, आसान हैं ,
कुछ तुम रहो कुछ हम रहे,
कब तक नाराजगी का बोझ उठाओगे,
कुछ तुम हंसो कुछ हम हंसे 
बहुत आएंगे ये  कहने वो कहने वाले 
कुछ भरोसा तुम करो, कुछ कुछ हम करे 
हाँ  हम कुछ नाराजगी रखते हैं ,
कुछ तुम मनाओ, कुछ हम मनाए ॥ 

Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।
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