मैं दर्द में खामोश हूं,
मेरा चिल्लाना तुमने सुना होगा,
तुम कहां हो, या अनजान बन गए हो तुम,
मैं शब्द में नहीं हूं, ना कभी रहा हूँ मैं,
मुझे भावनाओं में सुन सकती हो तुम,
शायद सुना भी हो
जैसे तुम मेरे अंतर मन में हो कही,
पर मेरी दुनिया में मर चुकी हो,
मैं अकेला होता हूं कभी-कभी,
जब अपने पास होता हूं ,
मुझे आज भी एहसास है,
उस आखिरी मुलाकात का,
क्या तुम्हें है,
हां हां तुम्हे तो होगा ही,
तुम तो सिसक जाती थी,
ये अनकही सच्चाई सुनकर..
वो सवाल तुम्हारे, जिनका उत्तर जानकर भी मैं,
खामोश रहता था,
मेरी चुप्पी में एक तुफान था,
शायद जिसे तुम देख न पाई,
बार-बार उठते वो चक्रवात,
तुम्हारे उस एक सवाल पर,
क्या हम अलग हो जाएगे?
मैं उस आंधियों को अपने में ही दबा लेता था,
तुम तक आती थी बस ठंड़ी हवा,
जो तुम्हें शांत कर देती थी, पर कुछ पल के लिए,
तुम्हे याद है वो सब, या वक्त के साथ वो भी पीछे छुट गया,
मुझ में कैद है वो अभी, शायद हमेशा, नहीं-नही, शायद नहीं हमेशा,
जब तक सांस है मेरी, तब तक।।
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत (प्रिंट) किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।