गुजरे जमाने की बात

मेरी बात

ऊंची-ऊंची इमारतें सडको पर सरपट दौडती गाड़ियां, शाम को रोशनी से नहाए बाजार, लोगो का एक-दूसरे के नजदीक से गुजरना, एक भीड़ को पार करते हुए, दूसरी भीड़ का हिस्सा बनना, अपनी मंजिल पर पहुंचना। मेट्रो शहरो में यह आम बात है। इस चकाचौंद भरे जीवन को पाने के लिए हम दिन भर कोल्हू के बैल की तरह घूम रहे हैं परन्तु पहुंचते कही नहीं। इस दौड़ में जीतने वाला भी हारता है और जो हारता है, वह फिर एक नई दौड़ में शामिल हो जाता हैं।
सुख-सूविधओ की इस दुनिया में, शान्ति कही नही मिलती है। फिर भी हम सब इस दौड़ का हिस्सा बनना चाहते हैं। जब तक हमें समझ आता हैं कि सारा जीवन इसी भाग-दौड़ में निकल गया। तब जीने के लिए समय ही नही बचता।
चौपालो में बैठना, मिले कोई तो राम-राम कहना , चलते-चलते बुजुर्गो का छोटो को डांटना, यह सब अब गुजरे जमाने की बात हो गई हैं। क्योंकि आज हम सभी मेट्रों में रहना चाहते हैं, मनों में नही। अंत में, मैं बस इतना कहना चाहूंगा
इस वाट्सएप के संदेशों में पत्रों वाला प्यार कहां,
वो नमस्कार, वो चरण स्पर्शं, वो अपनेपन की बात कहां।।

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