कोई दर्द देख बढ़ता है आगे, कोई दर्द में भी देखता है फायदे,
कोई छोड़ देता है रोता किसी को,
कोई लेता है चित्र, ओर बेचता किसी को,
कोई उठाता है रोते हुए को, कोई छोड़ता है रोते सभी को,
ये दुनिया के दस्तूर, ये दुनिया की बाते,
कोई ढूंढ लेता है, इसमें भी खुद को॥
Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को उद्धृत नहीं किया जा सकता है। इस लेख के किसी भी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किये जाने पर क़ानूनी कार्यवायी होगी।