वो पूछती है क्या सच में जुदा होंगे हम

वो पूछती है क्या सच में जुदा होंगे हम, मैंने कहा वक्त का सितम वक्त पर छोड़ दे,थोड़ा पास बैठ थोड़ा पहलु में रोन दे,समझ है उसे, की ये हो नहीं सकता,ख्वाब का जीवन है, जीना चाहती है वो,पूरी जिन्दगी न सही, कुछ पल चाहती है वो,रो बैठती है कभी-कभी,जब हौंसला टूटता है,मुझको पास रख […]

Continue Reading

अब मंजिल से मेरी नज़र हटती नहीं

सबने तारीफ की जुल्फों की, मेरी कलम मां की झुर्री तक सिमटी रही,मैं ठिकाना बना सबका, सबकी नज़र मंजिल पर टिकी रही,टकराया मैं हर तूफान से, तेरी सलामती के लिए,मेरी नींव क्या हिली तेरी सीरत बदलती रही,मैं बदलता नहीं यही खासियत है मेरी,कच्ची ज़मीन में किसी इमारत की नींव डलती नहीं,तू रहा हमेशा अपनी पहचान […]

Continue Reading

मैं भीड़ में खो नहीं सकता

मैं भीड़ में खो नहीं सकता, मैं हर किसी का हो नहीं सकता, हाथ थाम लूं किसी का भी, ये आदत नहीं है मेरी, और जिसका पकड़ु,वो जुदा हो, ये हो नहीं सकता।। Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को […]

Continue Reading

तुम गिला करते तो अच्छा था

बेरंग सी है जिंदगी कुछ रंग की तलाश में,आज मैं भी निकला हूं अपने वक्त की तलाश में, कहते तो हैं सब हम तेरे हैं, निकल जाते सब मौजों की तलाश में, पलट कर मैंने भी कभी देखा नहीं,जिसनें जाना है, क्यों नम आंख हो उसकी आस में, मैं देता वही हूं जो मिलता है […]

Continue Reading

क्या चाहता हूं मैं आसमां या ज़मी

क्या चाहता हूं मैं, आसमां या ज़मी, क्यों मुस्कुराता हूं मैं, क्यों हैं ये हंसी। जंमी पर आसमां के सपने है मेरे, जब थकता हूं याद आती हैं ये जंमी। उलझनों में उलझा रहता हूं, मंजिल की तलाश में,कभी हार हैं कभी जीत मैं उदास क्यों हूं, मैं इसकी तलाश में हूं किस फेर में […]

Continue Reading

न खुद को अकेला समझ, न ढूंढ ठिकाना रोने का

न खुद को अकेला समझ, न ढूंढ ठिकाना रोने का, ये वक्त मिला है तुझ को, कुछ बनने का कुछ होने का, ठुकरा दे आशाएं सबकी, कुछ कहने की कुछ समझाने की, ये आग दिल में जगाए ऱख, कुछ बनने की कुछ होने की, रख हौसला खुद पर, न घबरा विपत्तियों के वार से जीती […]

Continue Reading

सीमा पर मरता सैनिक, एक परिवार उजड़ गया

सीमा पर मरता सैनिक, एक परिवार उजड़ गया,   तुम कहते रहे, कडा जवाब, अब तक तुमने क्या किया, कहां गई वो बाते, जो अब से पहले होती थी,   जब चलती थी गोली सीमा पर,  तीखी बोली होती थी, किसका डर और क्या है ड़र, ये आज हमें तुम बतलाओ, इकोनॉमी के चक्कर में, […]

Continue Reading

दोस्ती का मैं तुझे क्या पैगाम दूँ

दोस्ती का मैं तुझे क्या पैगाम दूँ,  तू समझता है मुझे, मैं तुझे क्या इनाम दूँ, सारी दुनिया वो देखती, जो दीखता हूँ इक तू ही हैं जो मैं हूँ, वो मैं हूँ।। Note – इस कविता से जुड़े सर्वाधिकार रवि प्रताप सिंह के पास हैं। बिना उनकी लिखित अनुमति के कविता के किसी भी हिस्से को […]

Continue Reading

तमाम उम्र गवा दी नाराजगी में

तमाम उम्र गवा दी नाराजगी में , जिनसें नाराज हुए, उन्हें इल्म तक नही , बहुत छोटी है जिंदगी इन बातो के लिये  कुछ तुम चलो, कुछ हम चले, संवाद न हो तो कोई बात नही  बैठ पास कुछ  तुम कहो, कुछ हम कहे, भूल जाओ किस ने क्या कहा  कुछ हम मिले कुछ तुम […]

Continue Reading

कोई दर्द देख बढ़ता है आगे

कोई दर्द देख बढ़ता है आगे, कोई दर्द में भी देखता है फायदे, कोई छोड़ देता है रोता  किसी को,  कोई लेता है चित्र, ओर  बेचता किसी को, कोई उठाता है रोते हुए को, कोई छोड़ता है रोते सभी को,  ये दुनिया के दस्तूर, ये दुनिया की बाते,  कोई ढूंढ लेता है, इसमें भी खुद को॥   Note […]

Continue Reading